SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 99
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (६३) नहीं किया । जहाँ तक जैनधर्म का इससे सम्बन्ध है हम आप की सूचना के लिये निम्नलिखित पुस्तके भेज रहे हैं। इनके अवलोकन से श्राप को साग भेद खुल जायगाः १-जैनास्तिकत्व मीमांसा । ® २-जैममत नास्तिक मत नहीं है। ३-A Review of Heart of Jainisin. ( ४ ) पृष्ठ ३६-दूसरा पैराग्राफ़ । “पहले कभी पारसनाथ नामक एक तपस्वी ने ................"इन नये पंथ में दीक्षित किया।" यह गलती केवल आपने ही नहीं के , पहले भी लाहौर के मिस्टर गैरट और अब्दुलहमीद एम० ए. यही गलती अपनी हाई रोड्स आफ इण्डियन हिस्टरी में कर चुके हैं । हम ने उस के शुद्ध कराने के लिये अपनी १० मार्च १९२१ की छ.ग्रेजी चिट्ठी प्रकाशित की थी, जिस के उत्तर में डी० पी० आई० ( डाईरेक्टर शिक्षा विभाग )की जो चिट्ठियां हमें और पुस्तक प्रकाशकों को प्राप्त हुई उन की नकले साथ हैं । आप इस से हमारी सफलता का अनुमान कर सकते हैं। डाइरेक्टर साहेब के आदेशानुसार जो नया शुद्ध लेख उस पुस्तक में लगाया जा रहा है ( वह अभी विलायत में छप रहा है ) और जो पाव टैक्स्ट बुक कमेटी से स्वीकृत हो चुका है ___ * यह तीनों पुरसके हमारे यहाँ मिल सकती हैं। -7 काशक
SR No.032644
Book TitleBharatvarsh ka Itihas aur Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagmalla Jain
PublisherShree Sangh Patna
Publication Year1928
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy