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________________ ( १८ ) जहांतक जैनधर्म सम्बन्धी मुझे ज्ञान हैं आपके उत्तर ठीक हैं।......... आपके उत्तरों में मैं कोई वृद्धि नहीं करना चाहता । यह बड़े शोक का विषय है कि विद्वान् लेखकों ने जैनधर्म के सम्बन्ध में अपने विचारों को प्रकाशित कराने से पहले किसी ऐसे विद्वान् से सम्मति नहीं ली जिसे जैनधर्म का कुछ भी परिचय हो । इस प्रकार के अशुद्ध और नितान्त झूठे लेखों से बड़ी हानि होती है, अतः शुद्धसत्य की खातिर ही उनको पाठ्य पुस्तकों में से निकलवा देना चाहिये | आप का प्रयास सर्वथा श्लाघनीय है ।..” बहुत से जैन और अजैन पत्रों के साथ २ जैनपथ-प्रदर्शक आगरा ने भी मितीचैत वदी ८, संवत् १६८१ विक्रम को अपने पत्र के पृष्ठ ४०८ पर निम्नलिखित नोट प्रकाशित कियाः -- “श्रात्मानन्द जैन सभा, अम्बाला ध्यान दे । उक्त सभा के सभापति श्री गोपीचन्द्र जो वकील ने एक नोटिस पंजाब प्रांत के शिक्षाविभाग के पदाधिकारियों को इस आशय का दिया है। श्रमर ( अतर ) चन्द कपूर लाहौर वालों ने जो भारतका इतिहास स्कूलों में पढ़ाने के लिये प्रकाशित किया है उसमें जैनधर्म के सम्बन्ध में भ्रम से कुछ ऐसी २ बातें प्रकाशित की हैं जिनके कारण जैनधर्म को बहुत धक्का लगा ।
SR No.032644
Book TitleBharatvarsh ka Itihas aur Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagmalla Jain
PublisherShree Sangh Patna
Publication Year1928
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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