SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 22
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१६) टुकड़ा रखते हैं, बोलते समय जिसे वह अपने मुख के सामने कर लेते हैं। विद्वान् लेखकों के इस लेख पर टीकाटिप्पणी करने से हमारा अभिप्राय मात्र इतना ही है कि इस शुद्ध कर दिया जावे जिससे जनता में इस धर्म के विषय में मिथ्या-ज्ञान न फैल जाये । विज्ञ लेखकों से हमारी यही प्रार्थना है कि वह शुद्धिपत्र छपवादे और यदि वे हम से इस सम्बन्ध में कुछ पूछना चाहे तो हम हर समय उनके प्रश्नों का उत्तर देने को तैयार हैं। ___ हमारी दूसरी प्रार्थना यह है कि यह पुस्तक स्कूलों में न पढ़ाई जावे और जब तक यह ठीक न हो जावे इसे स्कूली . पुस्तकों की सूची में स्थान न दिया जावे। भवदीयगोपीचन्द बी० ए० वकील प्रधान यह छपी हुई चिटों कई विद्वानों की सेवा में भी भेजी गई, परन्तु खेद है कि मात्र दो चार सज्जनों ने ही इसका समुचित उत्तर देकर हमें प्रोत्साहन दिया । नीचे उनके पत्रों का भाव दिया जाता है:-- १-श्रीयुत विद्यावारिधि मि० चम्पतराय जैन वैरिष्टर । - हरदोई । ता०३-३-२५. . "जयजिनेन्द्र ! आपका २७-२-२५ को पत्र मिला, हाई...
SR No.032644
Book TitleBharatvarsh ka Itihas aur Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagmalla Jain
PublisherShree Sangh Patna
Publication Year1928
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy