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दो शब्द
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पिछले थोड़े ही दिनों से भारत वर्ष के इतिहास ने बहुत से विक्ष लेखकों का ध्यान आकर्षित कर रखा है। कई पुस्तके लिखी जा चुकी हैं और संभव है अभी और भी लिखी जा रही हो। किसी ने राष्ट्रीय पाठशालाओं के लिये राष्ट्रीय दृष्टि से इतिहास लिखना कर्त्तव्य समझा तो किसी को हाइस्कूलों में किसी देशीय भाषा के ( उर्दू या हिन्दी) शिक्षा का माध्यम होजाने ने पुस्तक लिखने के लिये प्रेरित किया। किसी ने छोटे बच्चों के ह्रदयों में इतिहास के लिये रुचि उत्पन्न करने के लिये कथा. ओं के रूपमें भारत के इतिहास का संकलन किया तो किसी ने भारतवर्ष का धार्मिक इतिहास लिखना ही अत्यावश्यक समझा । इन सभी सज्जनों का प्रयत्न स्तुत्य है । वह अपने परिश्रम में कितने सफल हुये हैं इस का निर्णय सुक्ष पाठको के हाथ में है।
परन्तु एक त्रुटि तो प्रायः सभी इतिहासों में देखी जारही है। वह यह है । “कि प्रायः सभी विद्वानों ने जैन धर्म के विषय