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________________ ( १३ ) २-तीर्थंकर भगवान् किसी दूसरे पुरुष के शिष्य नहीं हुया करत । वे तपस्या कर के स्वयं ही केवल ज्ञान को प्राप्त करके अपने पूर्ववर्ती तीर्थंकर के ही सिद्धान्तों का प्रचार करते हैं । भगवान् पार्श्वनाथ महावीर स्वामी से पहले हुए और उनके माता पिता भगवान् पार्श्वनाथ के मत के अनुयायी थे । इस से सिद्ध होता है कि भगवान् महावीर से पहिले जैनधर्म का अस्तित्व था और उन्होंने जैनकुल में ही जन्म लिया था । ३० वर्ष की अवस्था में उन्होंने सब कुछ त्याग दिया और वे भगवान् पार्श्वनाथ आदि पहले तीर्थंकरों की भाँति जैन मुनि रूप में तपस्या करने लगे । ३- यह सर्वथा असत्य और आधार रहित है । महावीर किसी टोले में सम्मिलित नहीं हुए. अतः उन्होंने किसी टोले को नहीं छोड़ा | उन्होंने अपना कोई मत नहीं चलाया परन्तु स्वाधीन रूप में केवल ज्ञान प्राप्त कर के उन्होने अपने पूर्ववर्ती तीर्थंकरों के सिद्धान्तों का ही उपदेश दिया। अतः ४० वर्ष की अवस्था में उन का एक मतका त्याग और दूसरे की स्थापना का प्रश्न ही नहीं रहता और यही प्रमाणित होता है कि जैनधर्म उन से भी पहले भारतवर्ष में फला हुआ था । ४ - जैन परमेश्वर में विश्वास रखते हैं । उन के सिद्धान्त के अनुसार परमात्मा सृष्टि का कर्त्ता अथवा संहर्त्ता नहीं है और कोई भी आत्मा पूर्णोन्नति कर के परमात्मपद को प्राप्त कर सकती है ।
SR No.032644
Book TitleBharatvarsh ka Itihas aur Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagmalla Jain
PublisherShree Sangh Patna
Publication Year1928
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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