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________________ सम्बन्ध-विच्छेद कर लिया । और जैनधर्म के नाम से एक नया धर्म चलाया।" ४-“वह परमात्मा को नहीं मानते थे।" ५-"प्राणरहित ( अजीव ) वस्तुओं में भी आत्मा है।" ६-"दोनों सम्प्रदायों की अपनी धार्मिक पुस्तके हैं और दोनों ही एक दूसरे के कट्टर शत्रु हैं।" ७-"कुछ समय के पश्चात् उन्होंने अपने १२ जिनों (तीर्थ करों ) की मूर्तियों की पूजा करना प्रारम्भ कर दिया। -"इनके साधु और साध्वियाँ अपने मुंह को कपड़े के एक टुकड़े से ढके रखते हैं, जिस से हवा में के कीड़े श्वास के साथ अन्दर जाकर न मरें।" अब हम इन आक्षोपों पर एक २ कर के विचार करेंगे: १-जैन इतिहास और पाश्चात्य विद्वानों के मत से यह बात असत्य है । महावीर भगगन जैन-धर्म के मूल प्रवर्तक नहीं, परन्तु २४ वे वा अन्तिम तीर्थंकर थे। पाश्चात्य विद्वानों की सम्मति देखिए:-- (क) श्रीमती सिंकलेयर स्टोवनसन एम० ए० एस० सी० डी० डबलिन अपनी पुस्तक "हार्ट आव जैनिडम" में क्या कहती हैं:___ "तीर्थंकर पार्श्वनाथ भी जो महावीर से पहिले हुए ऐतिहालिक व्यक्ति हो सकते हैं । बहुन सम्भव है कि उन्हें। ने ब्राह्मण-मत की सीमा से बाहिर के यति समुदाय को मर्यादा
SR No.032644
Book TitleBharatvarsh ka Itihas aur Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagmalla Jain
PublisherShree Sangh Patna
Publication Year1928
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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