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________________ ( १०३ ) हूँ कि मेरी 'तारीखेहिन्द' का पहिला एडीशन खतम हो चुका है और मुझे उस का दूसरा एडीशन तैयार करने की फुरसत नहीं हुई । जिस वक्त मैं दूसरो एडीशन तैयार कर के शाया करूँगा, उस वक्त मैं जैनधर्मके मुतअल्लिक जो कुछ मैंने लिखा है उस पर नज़रसानी करके उस में ज़रूरी तबदीलीकर दूंगा। अगली दफा मैं अम्बाला शहर या छावनी आऊँगा तो आप के दर्शन करूँगा। आपका न्याजमन्द ह० लाजपतराय लाला जी का इस विषय में अंतिम लेख इस प्रकार है: "जैन बिरादरी के एतराजात मेरे खिलाफ" . (अज लाला लाजपतराय जी) यह बात मेरे नोटिस में लाई गई है कि जो चन्द बयानात मैंने अपनी तारीख हिंद मतबूना सन् १६२२ ई० में जैन धर्म व जैनियों के संबंध में किये थे, उनकी बिनापर जैनियों को मेरे बरखिलाफ मुशतअल करके उनसे चन्द एलान मेरे बरखिलाफ निकलवाये गये हैं । यह कार्रवाई उन कोम परस्तों की तरफ से की गई है जिनका अपना मजहब कुछ नहीं, जैनी होना तो दर किनार । लेकिन मेरा हिसाब साफ है, इस लिये मुझे भरोसा है कि जैनो साहबान इस मुश्रामले में गुस्सा से काम न लेंगे और जरा विचार करेंगे कि असल मुश्रामला दया है।
SR No.032644
Book TitleBharatvarsh ka Itihas aur Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagmalla Jain
PublisherShree Sangh Patna
Publication Year1928
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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