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अयोध्या का इतिहास
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घोधी सत्वने अभ्यास किया था उसी स्थान में "अरहंतशीद शिननल" नामक शास्त्र लिख कर इस बात का प्रतिपाद किया है कि व्यक्तिरुप में अहम कुछ नहीं है गोप अरह ने भी इस स्थान पर “शिङ्ग कियोइड शीलन' नामक ग्रन्थ को घना कर इस बात का प्रतिवाद किया है कि व्यक्ति विशेषरुप में अहम ही सब कुछ है -ये स्थान वोही है जहां पर हाल में पांच भगवान के ११ कल्याणक की पवित्र पादुकायें विराज मान है
इ-स-१३०७ विक्रम सं-१३६४ मे श्री जिनममा मुनिजी ये आश्विन सुदी अष्टमी के रोज श्रीमयोध्या जी में श्रीपयुषणा कलप नियुक्ति पर टीका भाग्य लिखी थी जिसमें ६६ प्राकृत भाषा की गाथायें है।
इ-स-१८७५ में पं० मोहनलालजी तत्शिष्य पूरनचन्द जती श्रीपूज्य एक पुस्तक लिखी जिसमें प्राचीन स्तवन स्त्रोत्र स्मरण वीरहा जो लिखी प्रति हाल में प्रयोध्याजी कारखाना में रही जिस प्रति बाबू मि श्रीलालजी केपास में है।
प्राचीन प्रतिमायें। मन्दिर के कल्याणक वाले पवित्र समोव सरणके चौतय