SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 58
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ ४५ ] अयोध्या का इतिहास। "१-भरत २-सागरलेन ३-महापद्म ४-हरीषेण ५-सम्प्रति ६--कुमारपाल ७- वस्तुपाल" मुसलमानी राज्यकाल में बहुत सम्वेगी साधु आचार्यों ने तीयों के रक्षणार्थं शाही हुक्म निकाले दिल्ली के वादशाहों को शिष्य बनाया जिसमें श्री ही विजय सूरिश्वरजी, श्रीजीन चन्द्र सुरिश्वरजी, श्रीजीनदत्त सुरिश्वरजी मौर श्री जीनकुशल चन्द्र सुरिश्वरजी मुख्य हैं आप सुरिश्वरोंकी तरफ से तीर्थीका रक्षण हुन तो जरूर है मगर जो काम चैत्यवासियों ने किण था वैसा उत्तर भारत के तीर्थों के लिये किसी ने नहीं किया जिसमें इ-स-१८२० वी-सं-१८७७ में काशीनिवासी ब्रहद खरतर गच्छीभट्टारक श्रीजीन लाभ सरि शिष्योपाध्याय श्रीहीरधर्म परिजी तत्शिष्य श्री वृहद् खरतर गणीय पाठक श्रीकुशलचन्द्र सूरिजीके उपदेश से जयपुनिवासी प्रोसवाल वंशीय शेहगोत्रिय श्रीहुकमीचन्द जी तत्पुत्र श्रीउदयचन्द्र तथा बीकानेर निवासी ओसवालवंशीय वडेर गोत्रीय सामन्त सिंह जी के वरद हस्ते इस तीर्थ का पुनरोद्धार हुमा और उत्तराखण्ड की भूमि पर भनेक पाखण्डियों को हराकर बनारस के रामघाट का पुराना .१- सगरचक्रवर्ती २- महापद्मनन्द जिसने नन्द वंश चलाया . ३-वीशस्थानक पूज्य पद
SR No.032642
Book TitleAyodhya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJeshtaram Dalsukhram Munim
PublisherJeshtaram Dalsukhram Munim
Publication Year1938
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy