SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 65
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ५८ ) जनपदीप स्वरूप हमें अशोक के अभिलेखों की मागधी में मिलते हैं। यही मागधी अथवा पालि बिम्बिसार से लेकर नन्दों और मौर्य सम्राटों तक की राज भाषा थी। राजकीय भाषा और धर्म की भाषा दोनों भाषा होने का गौरव पालि को मिला । इसी कारण इसकी प्रतिष्ठा दिगन्त व्यापी हुई । करीब छः सौ वर्ष तक इस पालि भाषा ने भारतीय मानस में राज्य किया। जैनागम साहित्य ___भाषा की दृष्टि से जैनागमों की प्राचीनता न होते हुए भी विषय और वस्तु की दृष्टि से जैनागम बहुत प्राचीन हैं। जैनों के तीनों सम्प्रदाय बारह अंगों के नाम के विषय में एकमत हैं। बे बारह अंग ये हैं : १. आचार, २. सूत्रकृत, ३. स्थान, ४. समवाय, ५. व्याख्याप्रज्ञप्ति, ६. ज्ञातृधर्म कथा, ७. उपासक दशा, ८. अंतकृद्दशा, ६. अनुत्तरोपपातिकदशा, १०. प्रश्न व्याकरण, ११. विपाकसूत्र, १२. दृष्टिवाद । जैन मान्यता के अनुसार दृष्टिवाद का लोप हो गया है। इन अंगों में प्राचार्य भद्रबाहु के बाद की बातें नहीं हैं, ऐसा नहीं कहा जा सकता । बहुत कुछ मिलावट है ; पर बहुत कुछ प्राचीन भी है। श्रीकृष्ण, जरासन्ध और पार्श्वनाथ की बातें भी इनमें हैं। महावीर के काल की बहुत सी बातें हैं । यही नहीं, इन जैनागामों में भारतवर्ष के तमाम पिछले दार्शनिक चिन्तन का प्रारम्भिक रूप है । ऐतिहासिक और दार्शनिक दोनों ही दृष्टि से जैनागम का बहुत महत्व है। पर यह बड़े दुर्भाग्य की बात है कि ऐतिहासिकों दृष्टि से जैनागमों का सम्पादन अभी तक नहीं हुआ। जिस दिन साम्प्रदायिक बुद्धि से ऊपर उठकर जैनागमों का सम्पादन हो जायगा, उस दिन हमारे देश के इतिहास के कुछ बन्द पृष्ट खुल जायँगे, इसमें जरा भी सन्देह नहीं। त्रिपिटक साहित्य 'प्राचीन मागधी साहित्य का अर्थ होता है बुद्ध के उपदेश । बुद्ध के
SR No.032629
Book TitleMagadh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBaijnath Sinh
PublisherJain Sanskruti Sanshodhan Mandal
Publication Year1954
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy