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________________ ( ५५ ) त्रिपिटकों की पालि प्राचीन मगध की ठीक ठीक भाषा थी, यह नहीं कहा जा सकता । बुद्ध ने पैदल घूम-घूमकर सम्पूर्ण मध्यमण्डल में मौखिक रूप से अपना उपदेश दिया था। बुद्ध के शिष्यों में अनेक जातियों के लोग थे, अनेक स्थानों के अनेक भाषाभाषी लोग थे। और बुद्ध ने बहुत स्पष्ट शब्दों में कह दिया था-"भिक्षुरो ! अपनी अपनी भाषा में बुद्ध वचन सीखने की अनुज्ञा देता हूँ।" अतः बुद्ध के उपदेशों की भाषा में अनेक बोलियों और भाषाओं का सम्मिश्रण हुआ होगा। यही नहीं, बुद्ध-निर्वाण के दो-तीन शताब्दियों में तीन बार अनेक स्थानों के भिक्षुओं ने मिलकर और सुनकर बुद्ध उपदेशों का संग्रह किया था। बुद्ध के उपदेशों का अन्तिम रूप से संकलन अशोक के काल में हुआ और वही सिंहल गया। इसलिए त्रिपिटक की पालि प्राचीन मागधी नहीं है। हाँ, उसमें प्राचीन मागधी का कुछ रूप अवश्य है। पार्श्वनाथ और महावीर के उपदेशों का भी करीब करीब यही हाल है । आगमों की सामान्य व्याख्या में प्राप्त कथन को आगम कहा गया है। और जैन सम्मत प्राप्त कौन हैं, इसे स्पष्ट करते हुए बताया गया है कि जिसने राग और द्वेष को जीत लिया, ऐसे तीर्थकर-जिन-सर्वज्ञ भगवान प्राप्त हैं। अर्थात् जिनोपदेश जैनागम है। यहाँ भाषा का उल्लेख ही नहीं है । यही नहीं, सूत्र या ग्रन्थ रूप में उपस्थित गणधर प्रणीत जैनागम का प्रमाण गणधरकृत होने मात्र से नहीं है। उसके अर्थ के प्रणेता तीर्थकर की वीतरागता और सर्वार्थसाक्षत्कारित्व के कारण है। इससे सिद्ध है कि जैन साधकों की दृष्टि भी भाषा पर नहीं थी ; यद्यपि महावीर का उपदेश, अर्धमागधी भाषा में हुआ, इसका उल्लेख है ; पर सँग्रह की दृष्टि से भाषा के स्थान पर भाव पर ही विशेष जोर है। इसके अलावा महावीर ने भी पैदल घूम-घूमकर अपना धर्मोपदेश जनता को दिया। शायद इसलिए जैन अनुश्रुति में महावीर की भाषा को मागधी न कह कर 'सर्वभाषानुगामिनी अर्ध मागवी भाषा' कहा गया ।
SR No.032629
Book TitleMagadh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBaijnath Sinh
PublisherJain Sanskruti Sanshodhan Mandal
Publication Year1954
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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