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________________ "राज-प्रासाद और भवन नगर के बीचो बीच कल की ही भाँति श्राज भी खड़े हैं। उनका निर्माण अशोक के द्वारा प्रयुक्त देवो ने किया था, जिन्होंने पत्थर के ऊपर पत्थर रखे, दीवारें और द्वार खड़े किये, उत्खचन और तक्षण कार्य सम्पादित किये, जो इस धरती पर मनुष्य नहीं कर सकते।" यही नहीं सम्राट अशोक के सबसे महत्वपूर्ण निर्माण कार्यों में प्रस्तर स्तम्भ और अभिलेख हैं । इन स्तम्भों की कला अप्रतिम है और इनका आश्चर्य जनक 'फ़िनिश' भारतीय वास्तु का गौरव । ये स्तम्भ ऊँचाई में प्रायः पचास फीट और वजन में प्रायः पचास टन के हैं। पर ये सभी एक ही पत्थर के हैं और चुनार में बनाकर बाहर ले जाए गये हैं। ये मोम बत्ती की भांति नीचे मोटे ऊपर पतले और निष्कलंक हैं। इनके दो भाग हैं, नीचे का दण्ड और ऊपर का मस्तक । मस्तक के भाग हैं नीचे घंटानुमा प्राकृति अथवा अधोमुख कमल, बीच का ड्रम और ऊपर की कोरी पशुमूर्ति । ड्रम के ऊपर अनेक पशु और चक्रादि की प्राकृतियाँ बनी होती हैं, ऊपर सिंह, वृषभ, अश्व तथा गज आदि में से कोई एक है । सारनाथ के स्तम्भ पर चार सिंह बने हुए हैं। इन पशुत्रों की शिराएँ साफ निकली हुई और सजीव हैं। इन पर ऐसी चमकीली पालिश है कि ये स्तम्भ धातु के बने मालूम होते हैं। यह पालिश मौर्य कालीन है, जो अशोक के बाद सदैव के लिये उठ गयी। मौर्य काल में भारत का ईरान आदि देशों से धना मैत्री सम्बन्ध था; आपस में आदान-प्रदान था । इस आदान-प्रदान का प्रभाव इन कलात्रों पर भी पड़ा है। अशोक के पहले अभिलेखों की प्रथा भरत में नहीं थी। पर ईरान में स्तम्भों और चट्टानों पर प्रशस्तियाँ तथा घोषणाएँ खुदती थीं। देवानांप्रिय अशोक का अपने लिए सम्बोधन भी ईरानी अनुकरण पर है। सम्राट अशोक महान उदार थे। उन्होंने जो भी अच्छी वस्तु जहाँ से मिली, उसे अपना लिया । इसी कारण वे सरलता से इस ईरानी कला को स्वीकार कर सके । साम्प्रदायिक दृष्टि से उदार होते हुए भी अशोक बौद्ध थे। साम्प्रदा
SR No.032629
Book TitleMagadh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBaijnath Sinh
PublisherJain Sanskruti Sanshodhan Mandal
Publication Year1954
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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