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________________ ( ३८ ) प्रजा की सेवा ___ चन्द्रगुप्त का जीवन व्यस्त, घटनाबहुल और रक्तांकित ही नहीं था। उसके जीवन में ऐश्वर्य भी था। उसने अपने निवास के लिये विशाल प्रासाद का निर्माण कराया था। वह प्रासाद एक सुविस्तृत उद्यान के बीचोबीच खड़ा था। उसके स्तम्भ सुनहरे थे और उद्यान में कृत्रिम मत्स्यह्रद तथा निभृत कुञ्ज थे। उसकी विस्मयजनक विभूति के सामने शूषा और एकवताना के ईरानी महलों का सौन्दर्य भी फीका पड़ जाता था। प्रायः काष्ठ का बना होने के कारण प्रकृति के संहारक कारणों से वह तो नष्ट हो गया ; पर पटना के पास कुमडहार गाँव में उसके आधार के भग्नावशेष अब भी हैं। चन्द्रगुप्त के राजदरबार के पत्थर के गोल और चिकने खम्भे वहाँ मिले हैं। चन्द्रगुप्त ने लगभग चौबीस वर्ष राज्य किया। उसका राज्य बहुत हंगठित और सुव्यस्थित था। साम्राज्य के विभिन्न केन्द्रों और नगरों को मिलाने के लिये सड़कें बनी हुई थीं। सड़कों के किनारे वृक्ष लगे थे। स्थान स्थान पर पान्थशालाएँ थीं। सिंचाई के लिये नहरें बनी थीं। बहुत से चिकित्सालय थे, जहाँ मुफ्त औषधियाँ मिलती थीं—सभी स्थानों पर वैद्यों का प्रबन्ध था । नगरों की सफाई और भोजन की शुद्धता पर विशेष ध्यान दिया जाता था। शिक्षा का भी प्रबन्ध था और शिक्षकों की वृत्ति बँधी थी । सुराष्ट्र में सुदर्शन झील चन्द्रगुप्त के प्रान्तीय गवर्नर पुष्पगुप्त ने बनवाया था। सिंह पराक्रम चन्द्रगुप्त का अन्तिम जीवन ___ महान पराक्रमी चन्द्रगुप्त, जिसके जीवन का प्रारम्भ एक सैनिक से हुअा था और जिसने एक बहुत बड़े साम्राज्य को धराशायी किया तथा जिसने स्वयं एक बहुत बड़े साम्राज्य का निर्माण किया ; जिसका वाह्य जीवन बहुत ही व्यस्त और सख्त था ; पर उसका अन्तर कुछ और था ! जीवन के अन्तिम प्रहर में वह अन्तर्मुख हो गया। जिसने तलवार से
SR No.032629
Book TitleMagadh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBaijnath Sinh
PublisherJain Sanskruti Sanshodhan Mandal
Publication Year1954
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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