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________________ है। पर इतना स्पष्ट मालूम पड़ता है कि मगध में नाग क्षत्रियों की बस्ती थी। गिरिव्रज के बीच में मणिनाग का स्थान था, जिसे मणियार मठ के नाम से अब भी लोग जानते हैं। अतः मगध में नाग क्षत्रियों का आधिपत्य होना सर्वथा स्वाभाविक था । श्रेणिक बिम्बिसार हर्य वंश का था। हर्यङ्क-वंश भी विस्तृत नाग जाति की ही एक शाखा है । अतः इस तथ्य में कुछ भी फरक नहीं पड़ता कि बाहद्रथ वंश के बाद मगध में नागों की सत्ता स्थापित हुई। पर मगध में नागों की सत्ता स्थापित होने के पूर्व काशी में नागों की सत्ता स्थापित हो चुकी थी। ई० पू० '६०० में काशी में नागों की सत्ता स्थापित थी। वस्तुतः परीक्षित की मृत्यु के बाद नाग पुनः प्रबल हो गए थे। काशी नाग जाति का पीठ स्थान था। काशी के देवता शंकर महादेव थे। तीन लोक से न्यारी और शिव के त्रिशूल पर काशी का अर्थ है कि काशी के नाग क्षत्रियों ने वैदिक आर्यों की प्रधानता को बहुत दिनों तक नहीं माना था। जैन तीर्थंकरों में तेईसवें तीर्थकर पार्श्वनाथ काशी के नागक्षत्रिय थे। राजकुमार थे। वह काशी के ब्रह्मदत्त राजाओं की परम्परा में थे । पार्श्वनाथ ऐतिहासिक व्यक्ति हैं और उनका काल ई० पू० ८०० है । इन सब से सिद्ध है कि यह पूर्व में नागों के अभ्युत्थान का काल था। बिम्बिसार जब मगध की गद्दी पर बैठा तो मगध एक छोटा सा राज्य था। बुद्ध के समय में मगध का विस्तार अाज के पटना जिला और गया जिला के उत्तरी भाग तक को घेरता था। इसी भाग को आज मगध भी कहते हैं। सुप्रसिद्ध बौद्ध विद्वान् राइस डेविड मगध की सम्भावित सीमाएं इस प्रकार बताते हैं-उत्तर में गंगा, पच्छिम में सोन, पूरब में अंग देश और दक्षिण में छोटा नागपुर का जंगल । विद्वानों का मत है कि लगभग ई० पू० ५४३ में बिम्बिसार ने मगध का शासन सूत्र सम्हाला । उसने अपनी राजधानी गिरिव्रज से जरा हटा ली। उसने वैभार और विपुल गिरि के उत्तर सरस्वती नदी के पूरब तथा
SR No.032629
Book TitleMagadh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBaijnath Sinh
PublisherJain Sanskruti Sanshodhan Mandal
Publication Year1954
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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