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________________ विद्यालयमें पढते हो तब नहीं, किंतु लडाई के मैदानमें उतरते हैं तब । उसी तरह भगवान योग-क्षेम कब करते हैं ? निगोदसे यहां तक भगवानका उपकार तो हैं ही, परंतु विशिष्ट प्रकारका योग-क्षेम तो. बीजाधान के बाद ही होता हैं, विद्यालयमें विद्यार्थी पढता हैं तब भी सरकारकी तरफसे सहायता मिलती ही हैं, किंतु हथियार तो युद्धके मैदानमें मिलते हैं । * बीजाधान बीजका उद्भेद, उसका पोषण वह योग । उस अंकुरेके आसपास बांड़ द्वारा उपद्रवोंसे सुरक्षा करनी वह क्षेम । योग-क्षेम करे वे नाथ । * हरिभद्रसूरिजी स्वयं आगमपुरुष हैं । इसीलिए उनकी प्रत्येक कृति आगमतुल्य गिनी जाती हैं। ऐसा उल्लेख पद्मविजयजीने १२५ गाथाके स्तवनके टब्बेमें किया हैं । सबसे पहले आगमों के टीकाकार हरिभद्रसूरिजी हैं । हम स्थानकवासी की तरह मात्र मूल आगमको नहीं मानते । टीका बगैरह सहित पंचांगी आगम मानते हैं । यदि उनकी आगम परकी टीकाएं आगम गिनी जाय तो अन्य ग्रंथ भी आगमतुल्य ही गिने जाते हैं । 'चूर्णि भाष्य सूत्र नियुक्ति, वृत्ति परंपर अनुभव रे; समय पुरुषना अंग कह्या ए, जे छेदे ते दुर्भव्व रे ।' आनंदघनजी आगमके रहस्यों को समझना हो तो हरिभद्रसूरिजी के योग ग्रंथोको पढना जरुरी हैं । ऐसा उपा. यशोविजयजीने कहा हैं । सूत्र नहीं मानते तो आप गणधरों को नहीं मानते । टीका बगैरह नहीं मानते तो अरिहंतोंको नहीं मानते हैं। क्योंकि अर्थ कहनेवाले अरिहंत हैं । सूत्र रचनेवाले गणधर हैं । * एक ही तीर्थंकरसे सभी भव्योंका योग-क्षेम शक्य नहीं हैं । अपार्ध पुद्गल परावर्तमें मोक्ष होनेवाला हो, उसीका योगक्षेम होता हैं । तत्काल ओपरेशन कराना हो उसी दर्दीका डोकटर ओपरेशन करते हैं । हमारा स्वभाव हैं : सभी मेरे पास रखूं । कुछ भी समर्पित न करूं । मेरा सो मेरा, तेरा भी मेरा । ऐसे स्वभाववाले का भगवान योग-क्षेम कैसे कर सकते हैं ? 1 ५६wwwwwwwwwwwwwww कहे कलापूर्णसूरि ४
SR No.032620
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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