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________________ संताप खड़े करनेवाले राग-द्वेषादि शत्रु हैं । राग-द्वेषादि हमारे अंदर ही रहे हुए हैं। इसीलिए बहुतबार पता भी नहीं चलता कि आचार्य भगवंत कहते है या रागादि कह रहे हैं ? इसीलिए ही उपर भगवान या गुरु को रखना जरुरी हैं । बहुतबार मोह ही ऐसे समझाता हैं : मैं ही नाथ हूं। पीडा के मुख्य तीन कारण हैं : राग, द्वेष और मोह । उससे भगवान भव्यात्मा को बचाते हैं । जिनका बीजाधानादि हो गया हो वैसे ही भव्य जीवों को यहां लेना हैं । आदि शब्दसे धर्मश्रवण आदि लेना । ऐसे भगवानको नाथ के रूपमें स्वीकारो और बेड़ा पार । हेमचन्द्रसूरिजी कहते हैं : मैं दास हूं। नौकर हूं। किंकर हूं । सेवक हूं। आप मात्र 'हां' कहो तो बात हो गई । अगर भगवान नाथ हैं तो कौन हेरान कर सकता हैं ? सरकार आपको सुरक्षा दें तो आपको खतरा किसका ? खतरे को दूर करने की जवाबदारी सरकारकी हैं। भगवान तो सरकार की भी सरकार हैं । सरकार की सुरक्षामें फिर भी खामी हो सकती हैं, यहां थोड़ी भी खामी नहीं हो सकती । बीजाधान नहीं हुआ हो ऐसे जीवों के नाथ भगवान नहीं बन सकते । दुनियामें बहुत सारे नाथ बनने जाते हैं, परंतु भगवान के बिना कौन नाथ बन सकता हैं ? अनाथी मुनि को श्रेणिकने कहा था : मैं आपका नाथ बनुं । उसी समय अनाथी मुनिने कहा : आप स्वयं अनाथ हो, तो दूसरे के नाथ कैसे बन सकोगे ? मैंने तो भगवान को नाथ किये हैं । श्रेणिक को तब समकितकी प्राप्ति हुई । भगवान के बिना जगत् अनाथ हैं । गुरुकी बात जब हम नहीं मानते तब भगवान को नाथके रूपमें नहीं स्वीकारते । क्योंकि गुरु स्वयंकी तरफ से नहीं, भगवानकी तरफ से बोलते हैं । . तापी नदी के पुलसे आप चलते हो और रास्तेमें ही पुल (कहे कलापूर्णसूरि- ४ 0wwwwwwwwwwwwwwwwwww ३५)
SR No.032620
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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