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________________ तेजोमयाय - भगवान तेजोमय हैं, उद्द्योतमय हैं । लोगस्स उज्जोअगरे । साधक को बहुतबार तेज दिखाई देता हैं । यह ज्योतिर्ध्यान हैं । परमज्योतिरूप भगवान में से ही आता यह स्फुलिंग ध्यानमयाय - ध्यानमें प्रतिमाजी आये । आलंबन प्रतिमा का लेना होता हैं । ध्यान के बिना वह हो नहीं सकता । ध्यान जो कोई भी करें वह भगवन्मय ही हैं । ऐसे भगवान के साथ एकाकार बनेंगे तब भगवान अवश्य मिलेंगे ही। धनमें ही संतोष न मानें पूज्यश्रीने कहा : (अमेरिकन जिज्ञासु मित्रों को) रोज सुबह होते ही कहाँ दौड़ते हो, क्यों दौड़ते हो ? धन कमाने के लिए ? उसके बाद सुख मिलता हैं? ठीक हैं । धन जीवन निर्वाह का साधन हैं, लेकिन उसमें ही सुख हैं ऐसा मानकर संतोष प्राप्त न करें । इस तीर्थमें क्यों आये हो ? क्या कमाई होगी? कमाईमें फरक समझ में आता हैं ? प्रभुभक्ति द्वारा ही सच्ची कमाई होगी। - सुनंदाबहन वोरा कहे कलापूर्णसूरि - ४ 6 6 6 6 6 6 6 6 6 6 6 6 6 6 67 १७) कह ४0ommonommmmmmmmmmm १७
SR No.032620
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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