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________________ कहे कलापूर्णसूरि-३ मिली। आनंद और प्रसन्नता की अनुभूति । बहुत-बहुत बधाई तथा अनुमोदना...! गुरुदेव की पवित्र शब्द-श्रेणिको चिरंजीवी बनाने का महान भगीरथ कार्य संपन्न हुआ, वह वास्तवमें बहुत बड़ी शासन-प्रभावना हुई कह सकते हैं । __बोलती हुई कैसेट के बदले यह पढने योग्य कैसेट घर-घर और उपाश्रय-उपाश्रयमें पू. गुरुदेव के शब्दों को जीवनमें और हृदयमें अनुगुंजित करती रहेगी । __ - गणि पूर्णचंद्रविजय पाटण पुस्तक 'कडं कलापूर्णसूरिए' मिली । आनंद हुआ । पूज्यश्री के परोसे हुए सुंदर पदार्थों को आपने शानदार बनाये हैं । सब तक पहुंचते ये अवतरण सचमुच ही मननीय हैं । __- हर्षबोधिविजय हुबली _ 'कडं कलापूर्णसूरिए' दलदार वाचना ग्रंथ प्राप्त हुआ । गुरुभक्ति और श्रुतभक्ति का सुभग समन्वय आपकी आत्मा को शीघ्रता से मुक्ति-सुख के अधिकारी बनायेगा यह बात निःशक लगती हैं । चतुर्विध संघ के लिए अति उपयोगी इस वाचनाश्रेणिका श्रेणिबद्ध प्रकाशन होता रहे और उसके द्वारा सर्व जीव गुणस्थानक की श्रेणि चढकर परम-लोक की प्राप्ति करे यही अभिलाषा । __ - मुनि दर्शनवल्लभविजय पालिताणा पुस्तक सुंदर हैं । पढने से अनन्य आनंद आता हैं । भले सुना हुआ हो या पढा हुआ हो, परंतु जब पढने बैठे तो अपूर्व लगता हैं । नई-नई स्फुरणाएं होती हैं । सबका संकलन कर सद्बोधरूप प्रसारण कर रहे हैं, उसकी अनुमोदना । फोटो के अनुरूप लेख होता तो विशेष आनंद आता । - गणि विमलप्रभविजय खंभात (कहे कलापूर्णसूरि - ४00000000000000000000 ३७५)
SR No.032620
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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