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________________ स्त्रियों का चरित्र और पुरुष का भाग्य देव भी जान नहीं सकते तो मनष्य तो कैसे जान सकता हैं ? दुबली-पतली कायावाले, हमेशा नीचा मुख रखकर पढनेवाले, भगवान के भक्त, सामान्य दिखते ये कलापूर्णविजयजी महान आचार्य श्री विजय कलापूर्णसूरीश्वरजी बनेंगे - ऐसी उस समय शायद किसी को कल्पना भी नहीं होगी । पूज्य आचार्यश्री विजयदेवेन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. : गांधीधाम चातुर्मास के बाद विरह व्यथित बने हुए मुनिश्री कलापूर्णविजयजी तथा सामखीयाली चातुर्मासस्थित पू. पंन्यासजी श्री दीपविजयजी आदि भचाउमें मिले । सामुदायिक कर्तव्य के बारेमें कुछ विचार-विमर्श किया । अब मुख्य प्रश्न यह था कि समुदाय-नायक कौन बने ? सबकी नजर पं.श्री दीपविजयजी पर स्थिर हुई । सचमुच ये अत्यंत योग्य महात्मा थे। उन्होंने अपने गुरुदेव पू.आ.श्री.वि. कनकसूरीश्वरजी म.सा.की अखंड सेवा और विनयपूर्वक २३ चातुर्मास तो उनके साथ ही किये थे और १४ चातुर्मास आज्ञा-पालन के उद्देशसे विविध क्षेत्रोंमें किये थे । प्रसिद्धि और प्रतिष्ठा से पर थे । सरल-हृदयी और निःस्पृह साधुरत्न थे। अतः पूज्य आचार्यश्रीने उन्हें संवत् २००४में पंन्यासपद से विभूषित किये थे । ऐसे सुयोग्य निःस्पृह महात्मा को आचार्य पदवी के लिए वागड़ सात चोवीसी तथा दूसरे अनेक संघोंने विनंति की... लेकिन निःस्पृह पंन्यासजीने समुदाय के संचालनमें अपनी लाचारी बताई तब मुनिश्री कलापूर्णविजयजीने उन्हें संपूर्ण सहयोग देने का वचन देकर अत्यंत आग्रहपूर्ण विनंति की । अतः पंन्यासजी म. मौन रहे तो वागड़ जैन संघने इस भव्य प्रसंग को शानदार ढंग से मनाने की तैयारियां की और वि.सं. २०२०, वै.शु ११ के मंगलदिन पंन्यासजी श्री दीपविजयजी म. आचार्य पद पर आरूढ हुए और आचार्यश्री विजय देवेन्द्रसूरीश्वरजी के नाम से समुदाय के नायक घोषित किये गये । पूज्य आचार्यश्री के सहयोगी मुनिश्री : पूज्य गुरुदेव के कालधर्म के बाद सिर पर आई साधु-साध्वी के विशाल समुदाय के संचालन की जवाबदारी को अपना कर्तव्य (३६६ 00oooooooooooooooooo कहे कलापूर्णसूरि - ४)
SR No.032620
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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