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ऐसा विचारकर अक्षय सामायिक करने बैठा । कोनेमें बैठा हुआ अक्षय सेठ से छुपा न रहा । पूछा :
'क्यों अक्षय ! क्या कर रहा हैं ?' 'सामायिक ।' . 'लेकिन आधी रात को ?'
'प्रतिदिन शाम को मुझे देवसिय प्रतिक्रमण का नियम हैं... आज बारह बज जाने से वह तो हो नहीं सकता, इसलिए सामायिक कर रहा हूं ।'
'अरेरे, तेरे नियम को मैं पूर्णतः भूल गया । किंतु अक्षय ! आज से तुझे कहता हूं कि दुकानमें चाहे जितना काम हो, फिर भी प्रतिक्रमण का समय होते ही तू निकल जाना । दुकान का काम तो होता रहेगा । मैं भले धर्म-क्रिया न कर सकू, लेकिन तुझे अंतराय कहाँ दूं ?
इस प्रकार अक्षय को सेठ की तरफ से संपूर्ण अनुकूलता मिली । अक्षय से सेठ को संपूर्ण संतोष था । सेठजी मानते थे कि जो आदमी खुद के धर्म को हृदय से वफादार हैं, वह आदमी खुद के सेठ को भी वफादार रहेगा । धर्म के प्रति जो बेवफा बने वह सेठ के प्रति वफादार रहे इस बातमें कोई दम नहीं ।
राजनांदगांव के एक भव्य जिनालयमें श्री पार्श्वनाथ भगवान की श्यामवर्णी शांतरस बहाती मनोहर प्रतिमा हैं । उसकी पूजा और भक्तिमें अक्षयराज अत्यंत आनंदित होता । प्रतिदिन २ से २॥ घण्टे जितना समय पूजामें पसार होता । भगवान को देखकर अक्षय इतना पागल बन जाता कि खुद की जेबमें हो वे सब पैसे भंडारमें डाल देता ।
स्वतंत्र व्यवसाय करता अक्षय :
थोड़ा समय नौकरी करने के बाद सोने-चांदी का स्वतंत्र व्यवसाय शुरु किया । माता-पिता आदि को भी देशमें से यहाँ बुला लिया ।
सोने-चांदी के व्यवसायमें सफलता न मिलने पर कपड़े की दुकान शुरु की । उसमें धीरे-धीरे मास्टरी आने पर अच्छी सफलता मिल गई । (३४८00000wwwwwwwwwws कहे कलापूर्णसूरि - ४)