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________________ नहीं होती ? चिंतातुर हुई माताने अपने प्राणप्यारे इकलौते पुत्र को तुरंत फलोदी बुला लिया । विनयमूर्ति अक्षय : अब अक्षय का शिक्षण पुनः फलोदीमें शुरु हुआ । एक देशी स्कूलमें पढने बैठा । नम्रता की जीवंतमूर्ति समान अक्षय शिक्षक को देखते ही देखते अति प्रिय बन गया । अक्षय के साथ शिक्षक का इतने प्रेम का घना संबंध हुआ कि अक्षय को शिक्षक के बिना चले किंतु शिक्षक को अक्षय के बिना नहीं चलता । शिक्षक के अक्षय पर चार हाथ थे । सामान्य लोगों की ऐसी मान्यता हैं कि शिक्षक बुद्धिशाली पर कृपावृष्टि करते हैं । परंतु ऐसी बात सत्य नहीं हैं । अगर सच्ची हो तो भी संपूर्ण सत्य नहीं हैं । सत्य हकीकत तो यह हैं कि शिक्षक हमेशा नम्र और विनीत विद्यार्थी पर ही कृपावृष्टि करते हैं । अथवा ऐसा कहो कि उनकी अनिच्छा से भी कृपा बरस जाती हैं और वह विनीत विद्यार्थी बुद्धिशाली हो तो फिर पूछना ही क्या ? अक्षय विनीत होने के साथ बुद्धिशाली भी था । उसका ज्ञान विनय से शोभ उठा । मानो सोनेमें सुगंध प्रकट हुई । शंखमें दूध डाला गया । नम्रतायुक्त अक्षय की बुद्धि देखकर शिक्षक एकदम प्रसन्न हुए और अक्षय को तीसरी कक्षा से पांचवीं कक्षामें बिठा दिया । जीवनमें झड़प से आगे कौन बढ़ सकता हैं ? बुद्धिशाली आगे बढ़ जाता हैं ऐसा मानते हो ? गलत बात हैं । नम्रतारहित बुद्धिशाली आदमी आगे बढता दिखे वह भ्रमणा हैं, उसी तरह बुद्धिरहित नम्र आदमी पीछे पड़ता दिखे वह भी भ्रमणा हैं । बाह्य दृष्टि से भले पीछे दिखे लेकिन वह थोड़ी भी प्रगति करता हैं वह मजबूत होती हैं, पतन की शंका से रहित होती हैं । नम्रतायुक्त बुद्धिशाली जो प्रगति करता हैं वह अजबगजब की होती हैं । दूसरे लोग देखते ही रह जाये और वह सड़सड़ाट विकास के सोपान चढता ही जाता हैं । जिस पर शिक्षक (गुरु) की कृपा उतरी हो वह जीवनमें कभी हारता नहीं हैं, उसका कभी पतन नहीं होता । [३४०000000masoomammono कहे कलापूर्णसूरि - ४)
SR No.032620
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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