SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 36
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पू. भद्रंकरसूरिजी एवं पू. जंबूवि. के साथ, शंखेश्वर, वि.सं. २०४६ १८-९-२०००, सोमवार अश्विन कृष्णा - ५ * इस तीर्थ के आलंबन से अनेक आत्माएं मोक्ष में गई हैं और भविष्य में जाएगी । ___'तीरथ सेवे ते लहे, आनंदघन अवतार' - आनंदघनजी तीर्थ की सेवा करता हैं, उसे आनंदघन-पद (मोक्ष) मिलता ही हैं । तीर्थ की सेवा और तीर्थंकर की सेवा, दोनों में महत्त्व किसका ज्यादा ? तीर्थंकर की सेवा मुक्ति देती हैं, उसी तरह तीर्थ की सेवा भी मुक्ति देती हैं न...? अरिहंतादि चार की हम शरण लते हैं, किंतु इनमें शरण देने की शक्ति ही न होती तो ? इनमें लोकोत्तमत्त्व या मंगलत्त्व न होता तो हमें लाभ मिलता ? चारों की शरण में मुख्य अरिहंत की शरण हैं । उसके बाद सिद्ध, साधु और धर्म हैं । यहां देखा ना ? तीर्थ के लिए दो हैं : साधु और धर्म । इसीलिए ही तीर्थंकर से तीर्थ बलवान हैं। हेमचन्द्रसूरिजी कहते हैं : तेरी, तेरे फलभूत सिद्धों की, तेरे (६0000000000 कहे कलापूर्णसूरि - ४)
SR No.032620
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy