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के भव में भगवान मिल गये और उसका उद्धार हो गया, नहीं तो क्या होता ?
भगवान को दूर करने से नंद मणियार मेंढ़क बना ।
भगवान के नमस्कार के भाव मात्र से मेंढ़क दर्दुरांक देव बना ।
___ धर्म-बीज को बोने के बाद संभाल रखने में न आयें तो आगे का विकास दुर्लभ बन जाता है । मैं मेरी ही बात करूं तो लोगों की इतनी भीड़ कि मैं अपने लिए ५-१० मिनिट भी नहीं निकाल सकता । बहुतबार होता है : मैं क्या दूंगा ? मेरे पास क्या हैं ? फिर भी विचार आता है : मुझे भले ही कुछ नहीं आता । मेरे भगवान को तो आता हैं, वे साथ है। फिर क्या चिन्ता ? पण मुझ नवि भय हाथो-हाथे, तारे ते छ साथे रे;
___- पू. उपा. यशोविजयजी सच कहता हूं : अभी ही भगवती का पाठ महात्माओं को देकर आया हूं। क्या कहूंगा ? वह थोड़ा भी सोचकर नहीं आया हूं । भगवान भरोसे गाडी चला रहा हूं। - हमको शरणागति भी कहाँ आती है ? वह भी भगवान ही सीखाते हैं ।
* भगवान सिंह जैसे हैं। सिंह जैसा शौर्य श्रेणिक, सुलसा, रेवती आदि में आ सके, लेकिन सामान्य लोगों का क्या ? आठवां विशेषण है : भगवान पुंडरीक कमल जैसे हैं, दर्शन मात्र से सबको आनंद देनेवाले हैं।
__ भगवान के बिना यह आनंद दूसरे कहां से मिलेगा ? नटनटी के दर्शन से मिलेगा ? बहुत लोग. प्राप्त करने का प्रयत्न करते हैं, परंतु मिले कहां से ?
कमल बनता है, कीचड़ और पानी से, लेकिन रहता हैं न्यारा ! भगवान भी कमल जैसे हैं ।
लक्ष्मी ने अपने निवास के रूप में कमल को स्वीकारा हैं। इसी लिए 'कमला' कहलाई हैं । लक्ष्मी को कमल के पास जाना पड़ता हैं । यहां पर कमल प्रभु की सेवा करने के (कहे कलापूर्णसूरि - ४00amoooooooooooooooo ३)