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________________ पू.पं.श्री मुक्तिविजयजी, जिनके पास पूज्यश्री ने वि.सं. २०१२ में अध्ययन किया था। ७-११-२०००, मंगलवार कार्तिक शुक्ला - ११ * 'मोक्ष के कर्ता भगवान हैं ।' - ऐसा मानोगे तो ही साधना का प्रथम चरण शुरु होगा । 'भगवान विश्व के कर्ता हैं।' इस बात को हम नहीं स्वीकारते, क्योंकि यह बात नहीं घटती, परंतु साधना के क्षेत्रमें तो भगवान का कर्तृत्व स्वीकारना ही पड़ेगा । इसलिए ही यह ललित विस्तरा ग्रंथ हैं । इसका स्वीकार किये बिना हमारी तथाभव्यता का परिपाक नहीं हो सकेगा । यद्यपि, ऐसा भी कह सकते हैं : तथाभव्यता का परिपाक हुआ हो अथवा होनेवाला हो उसे ही भगवान की शरण स्वीकारने का मन होता हैं । आप जब भगवान को संपूर्ण रूप से समर्पित बनते हो तब भगवान आपकी संपूर्ण जवाबदारी सम्हालते हैं, आपको प्रतिदिन आवश्यक मार्गदर्शन दिया करते हैं। कभी गुरु द्वारा देते हैं, कभी पुस्तक द्वारा, कभी किसी .घटना द्वारा या कभी स्वप्न द्वारा भी भगवान मार्गदर्शन देते हैं । भगवान अनेक रूप से आते हैं । कहे कलापूर्णसूरि - ४ 66666666 6 6666 २६९)
SR No.032620
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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