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________________ इस सनातन में कोई आगे-पीछे नहीं है । एक अरब अट्ठानवे करोड़ वर्षों से भी पुराना है हमारा इतिहास । हमें टूटना नहीं चाहिए । अगर हम राजस्थान की ढाणीओं की तरह टूटना चालु रखेंगे तो हमारा टूटना कोई रोक नहीं सकता । मेरी कामना है : सभी हिन्दु (श्वेताम्बर, दिगम्बर, हिन्दु आदि) ओं का एक तीर्थ हो । * राम का प्रादुर्भाव केवल वैदिक हिंसा रोकने के लिए ही हुआ था । वैदिक हिंसा का प्रारंभ केवल रावण से ही हुआ था । अगर इसे कोई अन्यथा सिद्ध कर दे तो मैं जाहिर मंच पर आना बंद कर दूंगा । सांप को मारना रामचन्द्रजी इस अर्थ में उचित समझते थे कि दूसरे जीव चैन से जी सके । हिन्दु-एकता के लिए मेरे शरीर की कभी भी जरुर पड़े तो आधी रात को आने के लिए तैयार हूं। हम तीर्थंकरों की संतान है । ' इतनी देर तक आपने मुझे (सुनकर) बर्दास्त किया, इसलिए मैं आपका आभारी हूं। पूज्य धुरंधरविजयजी : पालिताणामें आये तब से सौहार्द का वातावरण रहा हैं। चातुर्मास समाप्ति के समय आचार्य श्री धर्मेन्द्रजी एकता का मिशन लेकर आये हैं । थोड़ा समझ लें । हिन्दी प्रजा के विभाजन के लिए षड्यंत्र चल रहा हैं । जैनों भी लघुमतीमें आ जाय उसके लिये लालच दी जा रही हैं। बहुत विचारक विरोधमें हैं । मूलमें थोड़ी लालच देकर बहुत नुकसान होता हैं उसमें हमें भागीदार नहीं होना हैं, वह समझ लें । हम आर्य हैं । आर्य कभी अलग हो नहीं सकते । आर्यपुत्र आर्य जंबू इत्यादि शब्दों के प्रयोग शास्त्रोंमें देखने को देखने मिलते हैं । आर्य का मतलब ही हिन्दु ! प्रायः इस बारेमें सब आचार्य एकमत हैं; महासंस्कृति से अलग नहीं होने में । कहे कलापूर्णसूरि - ४000wwwwwwwwwwwwwww00 २५७)
SR No.032620
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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