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________________ सम्पादकीय (गुजराती प्रथम आवृत्ति में से ) मृत्यु के बाद तो अनेक व्यक्ति महान् बन जाते हैं या दन्तकथा रूप हो जाते हैं, परन्तु कतिपय व्यक्ति तो जीवित अवस्था में ही दन्तकथा के रूप में हो जाते हैं, वे जग-बत्तीसी पर गाये जाते हैं । मानवजाति इतनी अभिमानी होती है कि वह किसी विद्यमान व्यक्ति के गुण देख नहीं सकती । हां, मृत्यु के बाद अवश्य कदर करेगी, गुणानुवाद भी अवश्य करेगी, परन्तु जीवित व्यक्ति की नहीं । मनष्यु के दो कार्य हैं जीवित व्यक्ति की निन्दा करना और मृत व्यक्ति की प्रशंसा करना । 'मरणान्तानि वैराणि ।' (वैर मृत्यु तक ही रहता है) इसीलिए ही शायद कहा गया होगा । परन्तु इसमें अपवाद है : अध्यात्मयोगी पूज्य गुरुदेव आचार्यश्री विजयकलापूर्णसूरीश्वरजी महाराज, जो स्वयं की विद्यमानता में ही दन्तकथा रूप बन गये हैं, लोगों के द्वारा अपूर्व पूज्यता प्राप्त किये हुए हैं। प्रवचन–प्रभावक पूज्य आचार्यश्री विजयरत्नसुन्दरसूरीश्वरजी महाराज ने पूज्यश्री के लिए सूरत - नवसारी आदि स्थानों पर कहे गये शब्द आज भी मन में गूंज रहे हैं । इन - वैभव 'पूज्य श्री में पात्रता - वैभव, पुन्य-वैभव और प्रज्ञातीनों का उत्कृष्ट रूप में सुभग समन्वय हो चुका है, जो कभी कभी ही, कुछ ही व्यक्तियों में देखने को मिलती विरल घटना है । हमारा दुर्भाग्य है कि विद्यमान व्यक्ति की हम कदर कर नहीं सकते । समकालीन व्यक्ति की कदर अत्यन्त ही कम देखने को मिलती है । उत्कृष्ट शुद्धि एवं उत्कृष्ट पुन्य के स्वामी महापुरुष हमारे बीच बैठे है जो हमारा अहोभाग्य है ।' प्रवचन-प्रभावक पूज्य आचार्य श्री विजयहेमरत्नसूरीश्वरजी महाराज ने थाणा, मुलुण्ड आदि स्थानों पर कहा था, 'वक्तृत्व, विद्वत्ता आदि शक्ति के कारण मानव मेदनी एकत्रित होती हो, ऐसे व्यक्ति अनेक देखे, परन्तु विशिष्ट प्रकार की वक्तृत्व शक्ति के बिना एकमात्र प्रभु-भक्ति के प्रभाव से लोगों में छा जानेवाली यही विभूति देखने को मिली । जिनके दर्शनार्थ लोग तीन-तीन, चार-चार घंटों तक कतार
SR No.032620
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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