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________________ हैं ।' वि.सं. २०३९ के अहमदाबाद चातुर्मास के समय नये वर्षमें यह बात मैंने की थी तब एक साध्वीजीने ११ हजार नये श्लोक कंठस्थ करने की बाधा ली थी । और वह पूर्ण भी की । कौनकौन से ग्रंथ कंठस्थ किये उसका पूरा लिस्ट हम पर भेजा था । दिनमें दस मिनिट भी स्वाध्यायमें संपूर्ण एकाकार बन गये तो भी काम हो जाये । परंतु इसके लिए १० घण्टे की महेनत चाहिए । अणुविस्फोट यों ही नहीं होता । अब दर्शन की शुद्धि के लिए कहूं । भक्तों के लिए समय आप बहुत निकालते हो, भगवान के लिए कितना निकालते हो ? मैं मात्र बोलता नहीं । ऐसा करके बोलता हूं। आप जानते हो : भक्ति के लिए मैं कितना समय निकालता हूं। __ भक्तिमें समय जाता हैं; ऐसा मैं नहीं मानता । मैं तो ऐसा मानता हूं : यही समय सफल बनता हैं । यह सब बल भगवान ही पूरा करते हैं । नहीं तो मुझमें क्या शक्ति ? चारित्रमें जयणा इत्यादि के लिये प्रयत्नशील बनें । रत्नत्रयी शुद्ध बनेगी तो मन शुद्ध बनेगा । रत्नत्रयी की आराधनामें तत्पर बनो ऐसी आजके नये वर्ष के दिन शुभेच्छा हैं । आप अभिग्रह लोगे तो वही उत्कृष्ट गुरु-दक्षिणा होगी । अभिग्रह पूरा करो तब मुझे अवश्य विदित करें । * संगीतकार : अशोक गेमावत आज नये वर्ष के दिन आशीर्वाद लेने आया हूं, खुद गाडी चलाकर आया हूं । बहुत गीत बनाये हैं, गुरुदेव के । आज जो मुझे पसंद हैं, वह बोलूंगा । जो जिनशासन के काज कर दिया, अर्पण जीवन सारा कलापूर्णसूरिजी हमारा... फलोदी नगरमें जन्म लिया हैं, पाबुदान का प्यारा खम्मादेवी का प्यार मिला, अक्षय हैं आँखों का तारा । गुरु तीस वर्ष की वयमें बन गये, शासन का सितारा कलापूर्णसूरिजी हमारा... (२१० 80000 कहे कलापूर्णसूरि - ४)
SR No.032620
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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