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________________ रुचि पैदा हुई हैं, इसलिए ही कहता हूं : हे प्रभु ! दीन दयाल ! आप मुझे तारें । * प्रभु मोक्ष के पुष्ट निमित्त कारण हैं । उपादान कारण आत्मा हैं । यह सच हैं, पर उपादान कारणमें रही हुई कारणता भगवानरूप निमित्त के बिना प्रकट ही नहीं होती । कुम्हार जमीनमें से खोदकर मिट्टी न निकाले वहां तक मिट्टीमें उपादान कारणता प्रकट नहीं होती। एक भी जीव अरिहंत के निमित्त प्राप्त किए बिना मोक्षमें गया नहीं हैं । एक भी घड़ा कुम्हार की मदद के बिना बना हो तो कहना । मरुदेवी माता को भी प्रभु का आलंबन मिला ही था । मैत्री आदि भावना माता स्वरूप हैं मां को संतान के प्रति वात्सल्य भाव होता हैं, वह मैत्रीभावना । मां को संतान के विवेक आदि गुणों के प्रति प्रमोद भाव होता हैं । मां को संतान के दुःख के प्रति करुणा उत्पन्न होती हैं वह करुणा भावना हैं । संतान यदि स्वच्छंदी बने तो मां माफ कर देती हैं वह माध्यस्थ्य भावना । जगत के सर्व जीवों के प्रति ऐसा भाव बनाना हैं । AM (१०८ 80wwwwwwwwwwwwwwww कहे कलापूर्णसूरि - ४)
SR No.032620
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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