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________________ * दिवार के साथ आप टकराएंगे तो दिवार को कुछ नहीं होगा, किंतु आपका सिर फूटेगा । उसी तरह धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय या जीवास्तिकाय के विषयमें आप विपरीत प्ररूपणा करो तो उनका कुछ नहीं बिगड़ेगा, परंतु आपका जरुर बिगड़ेगा । उसी तरह आप सम्यक् प्ररूपणा करो तो उनको भले कुछ हो या न हो, किंतु आपका हित तो जरुर होता ही हैं । * दिमागको विकसित करने के लिए ज्ञानमें प्रयास करते हैं उसी तरह कायाको विकसित करने के लिए वीर्याचारमें प्रयास करना चाहिए । एकके उपर टूट न पडें, तीनों नौकरोंको (मन, वचन, काया को) समान काम दीजिए । कहाँ से मिले ? स्वातिनक्षत्रमें छीपमें पड़ा हुआ पानी मोती बनता हैं, उसी प्रकार मानव के जीवनमें प्रभु के वचन पड़े और परिणाम प्राप्त करे तो अमृत बनते हैं । अर्थात् आत्मा परमात्म-स्वरूप प्रकट होती हैं । परंतु संसारी जीव अनेक पौद्गलिक पदार्थों में आसक्त हैं, उसे ये वचन कहाँ से शीतलता देंगे ? अग्नि की उष्णतामें शीतलता का अनुभव कहाँ से होगा ? जीव मन को आधीन हो वहाँ शीतलता कहाँ से मिले ? (७४ wwwwwwwwwww6600 कहे कलापूर्णसूरि - ४)
SR No.032620
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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