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में सब धर्म हैं, सब धर्मों में जैन-दर्शन नहीं है।
ऐसे स्याद्वादमय जैन-दर्शन को कौन परास्त कर सकता है ? ___ काशी में एक वादी को काशी का कोई विद्वान परास्त नहीं कर सका, परन्तु हमारे उपा. श्री यशोविजयजी ने उसे परास्त किया था । __ यह जैन-दर्शन की विजय थी ।
* क्षुद्र पुरुषों द्वारा किया हुआ अपवाद के रूप में नहीं लिया जाता । सत्त्वशालियों का आलम्बन लेना है । वज्रमुनि को विचलित करने के लिए उस देव ने भिन्न-भिन्न रूप करके कैसे प्रयत्न किये थे ? एक भी दोष नहीं लगने दिया । अतः प्रसन्न होकर देव ने उन्हें आकाशगामिनी तथा वैक्रिय लब्धि की विद्या प्रदान की । ऐसे सत्त्वशाली पुरुषों का आचरण प्रमाण गिना जाता है । ऐसे व्यक्तियों का आलम्बन लिया जाता है, क्षुद्र सत्त्ववालों का आलम्बन नहीं लिया जाता ।
* वज्र के अक्षरों से हृदय की तख्ती पर एक पंक्ति लिख रखें, जो मैं बार-बार कहता हूं -
__'प्रभु-पद वलग्या ते रह्या ताजा;
अलगा अंग न साजा रे ।' जिस गुफा में सिंह होता है, वहां अन्य क्षुद्र प्राणी क्या आ सकते हैं ? जहां भगवान बिराजमान हों, वहां क्या मोह आदि आ सकते हैं ?
भगवान मोक्ष में गये अतः उनके अतिशय आदि भी चले गये, यह न मानें । उनकी शक्तियां आज भी कार्य करती है - नाम रूप में, तीर्थ रूप में ।
उनके शासन से ही तो हमें इतना मान मिलता है । दक्षिण में देखा दूर-दूर से हजारो मनुष्य दौड़े आते हैं । यह किसका प्रभाव है ? यह पूजातिशय भगवान का नहीं तो किसका है ? क्या मेरा है ? भगवान का यह प्रभाव इक्कीस हजार वर्षों तक ऐसा ही रहेगा ।
यहां ही देखो न ? इतने ठाणे हैं, फिर भी वस्त्र, आहार, वसति के सम्बन्ध में क्या किसी को कष्ट हुआ ? किसी को कष्ट हुआ हो तो बताना । क्या यह शासन का प्रभाव नहीं है ? (५२ oooooooooooooooooo कहे कलापूर्णसूरि - ३)