SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 80
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ के लिए) तो तीन चौबीसी में (पू. यशोविजयजी, पृ. आनंदघनजी, पू. देवचन्द्रजी की) भी आगम हैं । मुझे तो बड़ी उम्र में अधिक याद नहीं रहता, अतः मेरे लिए ये ही आधार हैं, ये ही आगम पू. देवचन्द्रजी के स्तवन तो द्रव्यानुयोग एवं भक्ति का खजाना है। * आप विद्वान वक्ता हैं, लाखों को पहुंचाने वाले हैं, अतः आपके पास बात करता हूं । अनेक व्यक्ति कहते हैं : इन वाचनाओं में बोलने का रहने दें । श्रम पड़ेगा । परन्तु मैं कहता हूं : यह श्रम नहीं है। यही श्रम उतारने वाला है। अभी ही वाचना पूर्ण होगी और वासक्षेप लेने वालों की कतार लगेगी । वासक्षेप आदि में समय जाये उसकी अपेक्षा इसमें समय व्यतीत हो तो अधिक अच्छा है। तदुपरान्त, चिन्ता किस बात की ? ध्यान रखने वाले भगवान बैठे हैं । पं. जिनसेनविजयजी म. : द्रव्यानुयोग का विचार कैसे करें ? पूज्यश्री : पूछा है तो संक्षेप में कह दूं : शुद्ध आत्मद्रव्य अर्थात् परमात्मा । हम संसारी जीवों का अशुद्ध द्रव्य है, कर्म से लिप्त है । यदि भगवान का आलम्बन लेंगे तो अपना आत्म द्रव्य भी शुद्ध बनेगा । पू. देवचन्द्रजी कहते हैं : जब तक मेरी शुद्धता नहीं होगी, तब तक तेरी शुद्धता का आलम्बन मैं छोड़ने वाला नहीं हूं। 'सकल सिद्धता ताहरी रे, माहरे कारण रूप ।' जगतसिंह सेठ ने ३६० व्यक्तियों को करोड़पति बनाया था । जो आये उन्हें करोड़पति बनाये । भगवान हम सबको अपने समान करोड़पति से भी अधिक बनाना चाहते हैं । सेठ का धन तो घटता जाता है । यहां प्रभु के पास कुछ भी कम नहीं होता । [४८ 6000000000 was soon कहे कलापूर्णसूरि - ३)
SR No.032619
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 03 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy