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यह पुस्तक नहीं है, परन्तु पूज्य गुरुदेव की साक्षात् परा वाणी है, ऐसा स्पन्दन हुआ ।
पूज्य पं. मुक्तिचन्द्रविजयजी तथा पूज्य गणि मुनिचन्द्रविजयजी ने जो अथक परिश्रम करके गुरुदेव के आन्तरिक भावों को शब्द-देह प्रदान करके पुस्तक रूप में प्रकाशित किये जो अत्यन्त प्रशंसनीय है ।
- साध्वी सौम्यकीर्तिश्री
यह पुस्तक हमारे लिए प्रकाशस्तम्भ तुल्य है ।
- साध्वी दृढ़शक्तिश्री
_ 'कहे कलापूर्णसूरि' पुस्तक मेरे लिए तो अत्यन्त उपयोगी सिद्ध
__ - साध्वी हितपूर्णाश्री
समवसरण में बैठ कर प्रभुजी देशना दे रहे हों और हम उस वाणी का पान कर रहे हों, ऐसा भाव यह पुस्तक पढ़ने पर उत्पन्न होता है ।
- साध्वी चारुमैत्रीश्री
वर्षों के अध्ययन के बाद भी आगमों का जो रहस्य नहीं समझा जा सके, वह पूज्यश्री ने इस पुस्तक में सरल भाषा में स्पष्ट किया है।
__- साध्वी चारुचन्दनाश्री
पूज्यश्री ने भक्त की शैली में तलहटी से शिखर तक का साधना क्रम इस पुस्तक में व्यक्त कर दिया है ।
- साध्वी हंसपद्माश्री
पुस्तक पढ़ने पर हुए अपार लाभ यह तुच्छ कलम क्या लिखे ?
__- साध्वी भुवनकीर्त्तिश्री
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