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________________ आपकी तरफ से प्रेषित पुस्तक 'कहे कलापूर्णसूरि' प्राप्त हो गई । परम पूज्य साहेबजी की वाणी का हम प्रत्यक्ष लाभ लेना . चाहते हैं, परन्तु प्रत्यक्ष तो जब लाभ मिले तब, पर इस समय परोक्ष रूप से वाणी को कलमबद्ध करके पुस्तक के द्वारा हम जैसे छोटे व्यक्तियों के हाथ में आई है। जिस वाणी का वांचन अत्यन्त ही उत्तम है और पढ़कर साहेबजी के समान भगवान की भक्ति करें यही प्रार्थना है। ___ - साध्वी गुणसेनाश्री 'प्रभु के नाम में भी उपकार की शक्ति है', ऐसा कहने वाले व्यक्ति (पूज्यश्री) ऐसे ही होते हैं, जिन्होंने अपने जीवन में प्रभु के नाम के द्वारा थोड़ा नहीं, परन्तु बहुत सारा प्राप्त कर लिया हो । - साध्वी हंसध्वनिश्री . मेरा तो क्या सामर्थ्य है कि मैं इस पुस्तक के भीतर तक पहुंच सकू ? _ - साध्वी हंसबोधिश्री पुष्प की सुगन्ध तेल में आती है उस प्रकार से यह पुस्तक पढ़ने से भक्ति की सुगन्ध हमारे भीतर आती है। - साध्वी प्रशीलयशाश्रीजी यह पुस्तक पढ़ने के बाद प्रत्येक जीव के प्रति मैत्री-भाव बढ़ाने की भावना तथा समकित प्राप्ति के लिए देव-गुरु की अदम्य भक्ति उत्पन्न हो वैसी मैं याचना करती हूं । - साध्वी विशुद्धदर्शनाश्री पूज्यश्री के श्रीमुख से बहनेवाली वाणीरूपी सरिता में स्नान करके विशुद्ध बनने का स्वर्ण अवसर इस पुस्तक के माध्यम से प्राप्त हुआ है। ___- साध्वी हंसकीर्तिश्री (३६४00000wooooooooooooo कहे कलापूर्णसूरि - ३)
SR No.032619
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 03 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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