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मेघरथ राजा (शान्तिनाथ का जीव) ने तो एक कबूतर को बचाने के लिए अपने प्राण देने की तैयारी बताई थी । इस जीवन से यदि किसी का जीवन बचता हो तो इससे अधिक दूसरा कौन सा लाभ?
धर्मरूचि अणगार को याद करें । चींटियों को बचाने के लिए वे विषाक्त सब्जी खा ही गये ।
चौक को घिस कर हजारों चींटियों को मार डालने वाले क्या यह बात सुनेंगे ? - 'चूहों को, चींटियों को मारने की दवा' - यह पढने पर पहली बार पता लगा कि मारने की भी दवा होती है । मैं तो समझता था कि दवा तो सिर्फ जीवित ही रखती है । हम ऐसे युग में जी रहे हैं, जहां मारने की भी दवा मिलती है ।
ऐसे काल में भी दूसरे की मृत्यु में अपनी मृत्यु देखने वाले भगवान हमें मिले हैं, यह कैसा सौभाग्य है अपना ? (३) उचित-क्रियावन्तः ।
उचित व्यवहार -
जिस जीव की जैसी कक्षा है, उसके साथ वैसा ही व्यवहार करना वह औचित्य है ।
तीर्थंकर का जीवन औचित्यपूर्ण होता है। तीर्थंकर का जीवन प्रतिदिन पढ़ने योग्य होता है। यह नित्य नहीं कर सकते अतः प्रतिवर्ष कल्पसूत्र सुनना होता है। कल्पसूत्र में देखा न? भगवान कितने औचित्य के भंडार हैं । वे ज्ञानी होते हुए भी पाठशाला जाने का इनकार नहीं करते । वे बालकों के साथ खेलने का इन्कार नहीं करते । (४) अदीन भावाः ।
__ अदीन भाव - चाहे जैसा प्रसंग आये तो भी कदापि निर्धन बन कर दूसरे के पास मांगे नहीं । (५) सफलारम्भिणः ।
सफलारम्भ - जिस कार्य में निष्फलता मिलने जैसा हो, उसमें सिरपच्ची न करें । (६) अदृढानुशयाः ।
शायद क्रोध आये वैसे प्रसंगों में भी उनके क्रोध में अनुबंध न हो ।
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