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________________ नहीं किया, उदारतापूर्वक सबका समावेश करते रहे हैं । पूज्य आचार्यश्री विजयकलाप्रभसूरिजी : पूज्य गुरुदेव ने कितने सुन्दर शब्दों में अनुमोदन किया ? ऐसे दीर्घदृष्टा पूज्य गुरुदेव नहीं मिलें तो श्री संघ को मार्गदर्शन कहां से मिले ? मार्मिक प्रेरणा कौन दे ? ऐसा लगता है कि इतने वर्षोंमें दोनों समाज के लिए कभी नहीं की हुई बातें पूज्यश्री इस चातुर्मास में करेंगे । संगीतकार आशु व्यास : 1 1 श्री कच्छ-वागड़ देशोद्धारक नामथी पंकाओ छो ने भावनुं झरणुं नहीं, सागर तमे कहेवाओ छो आशुनुं आ छे भाव सर्जन, आपने चरणे धरूं कलापूर्णसूरि गुरु चरणमां, भावथी मस्तक धं मगजथी तर्क, जीभथी श्वास, अंतरथी भाव निकले छे । सत्कर्मथी सिद्धि मले तो नामना कहेवाय छे कहेवाय छे ने भावथी इच्छा मले तो, भावना साधकथी साध्य मले तो, साधना ने हृदयथी शब्दो मले तो, प्रार्थना कहेवाय छे कहेवाय छे गीत ( तर्ज : बहेना रे... ) सुणजो रे... सिद्धगिरिमां चातुर्मासनो लीधो लाभ महान्, आजे तमारूं सौ करशे सन्मान | 1 I सहु तीरथमां सिद्धाचल नो महिमा छे मोटो (२) शाश्वत आ गिरिराजनो क्यांए मलशे ना कोई जोटो (२) सिद्धाचलना डूंगरे शोभे, आदीश्वर भगवान... आजे... ॥ १ ॥ कलापूर्णसूरिनी प्रेम वादलियो, झरमर झरमर वरसे ( २ ) चातक थईने जे कोई पीशे, बाकी बधा टलवलशे । (२) गुरुवरना गुणरागी थई ने गावो ने गुणगान आज. ॥ २ ॥ कलापूर्णसूरिजी, कलाप्रभसूरिजी जिनशासनना धोरी ( २ ) एमनी अमृत वाणी जाणे, फूलडाए फोरम फोरी; ( २ ) " WWW २९९ कहे कलापूर्णसूरि ३ wwwwwwwwww -
SR No.032619
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 03 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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