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संभालनी पड़ेगी । प्रत्येक को अन्त तक साथ रहना है । इसके लिए मैं विशेषतः पूजनीय साध्वीजी भगवंतो को कहूंगा, विनती करूंगा ।
कल मात्र दर्शन करके चले नहीं जायें, अन्त तक जुड़े रहें । प्रत्येक व्यक्ति उपस्थित रहे तो कितनी शोभा बढ़े ? पूज्य धुरन्धरविजयजी :
पर्यूषण से पूर्व जिस प्रकार लाभ लिया, उसमें शिखर स्वरूप यह रथयात्रा निकलेगी । उसमें सभी को भाग लेना है । जूनागढ़ में महाशिवरात्रि की आधी रात को भवनाथ की रथयात्रा निकलती है । उसे आप कभी देखना । समस्त संन्यासी उपस्थित होते हैं । संन्यासिनियों वहां नहींवत् होती हैं । यहां साध्विजियों अधिक हैं ।
अहमदाबाद में आषाढ़ शुक्ला - २ को निकलने वाली जगन्नाथ की रथयात्रा भी भव्य निकलती है । चतुर्विध संघ के समस्त सदस्य दृष्टा की अपेक्षा दृश्य बन जायें तो अधिक उत्तम होगा । दर्शकगण दूसरे हों, हम नहीं । प्राचीन काल में पाटलिपुत्र आदि नगरों में निकलने वाली रथयात्रा में सभी उपस्थित रहते थे । महान् सम्राट् होते वे भी सम्मिलित होते थे । अरे, सम्मिलित क्या होते, भगवान का रथ खींचते थे । भगवान के समक्ष तो हम पशु ही हैं न ? घर के बैल तो सभी हैं न ? अलबत् बिना नथ के बैल हैं । ये तो अनेक बार बने, पर भगवान के रथ में बैल बनने का सौभाग्य कहां से ?
नंगे सिर कहां जा सकते हैं, जानते हैं न ? यहां सभी सिर पर कुछ डाल कर आयें । कुछ नहीं हो तो धोती को रंग कर पहन आयें । एक हजार जितने मुकुट तैयार है और 'खीमई' धर्मशाला में भी १५० साफे तैयार हैं ।
ढोर कदापि सिर पर नहीं बांधते । हम नहीं बांधे तो ढोरों जैसे नहीं हैं क्या ?
बैठ कर खायें वे आदमी हैं ।
खड़े-खड़े खायें वे ढ़ोर हैं । इसी लिए 'बुफे' को मैं 'बफैलो' कहता हूं । साधु बने बिना सिर नंगा नहीं रखा जाता । सिर मूल्यवान है । उसे खुला (नंगा) नहीं रखा जाता । मारवाड़ wwwww कहे कलापूर्णसूरि - ३
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