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कल्याण की प्राप्ति कराने के द्वारा भगवान अनुग्रह करने वाले हैं । भगवान ऋषभदेव के द्वारा इस तरह पचास लाख करोड़ सागरोपम तक उपकार होता रहा ।
उपादान-निमित्त दोनों मिलने पर धर्म मिलता है । भगवान उपकार करते रहते हैं । हमारा उपादान तैयार हो तब भगवान के अनुग्रह की वृष्टि होती है ।
चाहे हमें किसी मित्र, गुरु, स्वजन, पुस्तक अथवा दूसरे किसी निमित्त से धर्म मिला हो, परन्तु उन सबका मूल आखिर भगवान ही है । इस प्रकार भगवान परम्परा से निरन्तर उपकार करते ही रहते हैं ।
परदेश की पाठशालाएं परदेश में बसे परिवार स्थिर होने लगे, त्यों त्यों उन्हें अपने सन्तानों के संस्कारों की चिन्ता होने लगी; यद्यपि एक-दो पीढ़ियां तो चली गई । उनमें जो कुछ भी स्वच्छन्दता एवं दुराचार देखा तो गुरुजन जग गये । वर्तमान पीढ़ी में संस्कार बने रहें, एतदर्थ उन्हों ने पाठशालाएं खोलीं और बचपन से ही आहार आदि के संस्कारों का निर्माण करने लगे, सूत्र-स्तुतियां सिखाने लगे । वहां लगभग बारह वर्ष के बालक नौ तत्त्व आदि त्वरित गति से सीख लेते हैं । प्रथम उनमें बुद्धि से समझ उत्पन्न करनी पड़ती है । फिर तो वे स्वयं ही बोध ग्रहण करते हैं। किसी समय ऐसा होता है कि आदत के अनुसार माता-पिता मांसाहार करते हों, परन्तु पाठशाला का बालक उस आहार का सेवन नहीं करता । यह है जिन-शासन के संस्कारों का निर्माण !
- सुनन्दाबहन वोरा
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