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________________ तीर्थंकर भी जिसको नमस्कार करते हैं, इसका अर्थ यही कि इस संघ से अधिक कोई पूजनीय नहीं है। नमो अरिहंत + आणं = अरिहन्त की आज्ञा को नमस्कार । आज्ञा अर्थात् तीर्थ ! संघ ! 'आणाजुत्तो संघो ।' अब नवकार में संघ आया कि नहीं ? यदि मेरी बात असत्य हो तो मुझे लौटा दो । मैं तो अनुभव करता हूं कि सभी बातें नवकार में मिलती जाती हैं । इसीलिए नवकार को छोड़ कर अन्य कोई आलम्बन लेने की इच्छा नहीं होती। बीज छोटा होता है परन्तु उसका विस्तार कितना विशाल होता है ? क्या आपने कोई बड़ा बरगद देखा है ? पू. धुरन्धरविजयजी : कबीर वड़ एक किलोमीटर बड़ा है। पूज्यश्री : हमने लुणावा में विशाल बरगद का वृक्ष देखा है, जिसके नीचे दीक्षा आदि प्रसंग होते थे । इस बरगद का मूल छोटा बीज होता है ।। इस जैन-शासन रूपी विशाल वट-वृक्ष का मूल बीज 'नमो' नमो को उलटा करो तो ओम् (न) होगा । (ओम) ॐ में पंच परमेष्ठी हैं । यही बीज है । षोड़शाक्षरी, सप्ताक्षरी मन्त्र इसमें से ही बनते हैं । 'महानिशीथ' जैसे में कहा है - 'यह नवकार तो पंच-मंगलमहाश्रुत-स्कंध है। आकाश कहां नहीं है? आकाश नहीं हो ऐसी जगह बताओगे ? जगह अर्थात् आकाश । यह नवकार कहां नहीं है? यह आकाश की तरह सर्व व्यापी इस संघ के पास जब तक यह नवकार है, देव-गुरु-वन्दन है, तब तक कल्याण होता ही रहेगा । प्रातः संघ-भक्ति का उत्कृष्ट कार्यक्रम गिरिविहार में रहा । समय के अभाव से मैं भले तनिक जल्दी उठ गया । जल्दी उठने के कारण ही यहां आ सका, अन्यथा अभी तक आ नहीं सकता था । कहे कलापूर्णसूरि - ३00oooooooooooooooooo २६१)
SR No.032619
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 03 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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