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________________ सामान्य ग्राहक को उच्च स्तर का माल बताओ तो क्या होगा ? वह ग्राहक उच्च स्तर के माल का मूल्य नहीं दे सकेगा और निम्न स्तर का माल लेने के लिए तैयार नहीं होगा । यहां भी ऐसी ही दशा होती है । पूज्य हेमचन्द्रसागरसूरिजी : भगवान पहले सर्वविरति बताते हैं, फिर देशविरति बताते हैं न ? पूज्य श्री : अन्य दर्शनी को सर्वविरति बताई जाती है । उदाहरणार्थ हरिभद्र भट्ट । परन्तु जो सम्यग्दर्शन प्राप्त किया हुआ है, उसे देशविरति रूप भूमिका के लिए तैयार करके सर्वविरति के लिए योग्य बनायें । एकदम उतावल न करें । भवन बनाने से पहले नींव मजबूत करनी पड़ती है न ? सम्यग्दर्शन नींव है; फिर देशविरति और सर्वविरति रूपी मंजिल का निर्माण किया जा सकता है । फिर भी एकान्त नहीं है । उत्तम आत्मा हो तो उसे सर्वविरति भी पहले दी जा सकती है, परन्तु यह ज्ञानियों का विषय है । हम उनकी होड़ (तुलना) नहीं कर सकते । * मैं यहां उपदेश नहीं देता । हम सब साथ मिलकर स्वाध्याय कर रहे हैं । जिस प्रकार परिहार विशुद्धि में एक वाचनाचार्य बनता है न ? मैं भी उसी प्रकार से वाचना देता हूं, यह मानें । * 'भगवन् ! तेरी आज्ञा का पालन तो दूर रहा, आदर भी हो जाये तो भी काम हो जाये ।' ऐसा भाव भी तारक ( तारणहार) बनता है । * 'नमुत्थुणं' के अर्थ जानोगे तो जब उन्हें बोलोगे तब शुभ भाव बढ़ता जायेगा । शुभ भाव से सम्यग्दर्शन मिलेगा, मन की प्रसन्नता मिलेगी, जो बाजार में दूसरे कहीं से नहीं मिलेगी । मन की प्रसन्नता समाधि प्रदान करती है । समाधि मुक्ति प्रदान करती है । प्रभु मन की प्रसन्नता भरपेट देने के लिए तैयार हैं, क्योंकि प्रसन्नता का पूर्ण भण्डार भगवान के पास है । कल आपको भग के छः अर्थ बताये थे । महत्त्व के अन्तिम दो अर्थ बाकी हैं । २४८ कळकळ ८ कहे कलापूर्णसूरि -
SR No.032619
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 03 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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