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________________ SSES ANDROINISTRATIONPARDAMOMASHANGA SSESSION मद्रास पदवी प्रसंग, वि.सं. २०५२, माघ शु. १३ १७-८-२०००, गुरुवार भाद्र. कृष्णा -२ * २५०० वर्ष व्यतीत होने पर भी संघ आज भी जयवंत है । संघ गुण-रत्नों की खान है । तीर्थंकर 'नमो तित्थस्स' कह कर जिसे नमस्कार करते हैं, वह संघ क्या अन्य व्यक्तियों के लिए पूजनीय नहीं है ? इसकी गुण-गरिमा का वर्णन अन्य कौन कर सकता है ? चौदह पूर्वघर एवं केवली भी भगवान का वर्णन नहीं कर सकें, उस संघ की क्या बात ? क्योंकि संघ तो तीर्थंकरो के लिए भी पूजनीय है। पू. धुरन्धरविजयजी म. : 'नमो तित्थस्स' इतना पूजनीय होने पर भी नवकार में इसका स्थान क्यों नहीं है ? पूज्यश्री : संघ में नवकार है । नवकार में संघ है । पंच परमेष्ठी कहां से उत्पन्न होते हैं ? इसी संघ में से ही तो उत्पन्न होते हैं न ? पांचों पद तीर्थ रूप भी हैं । 'सिन्दूर-प्रकर में' संघ का महत्त्व बतानेवाला श्लोक देख लें । अरिहन्त संघ को इसलिए नमस्कार करते हैं कि मुझे तीर्थंकर बनाने वाला यह संघ है । हमें दीक्षा प्रदान करने वाले गुरु हैं, कहे कलापूर्णसूरि - ३ 66655555 S ane 6 २२५)
SR No.032619
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 03 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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