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नमो जिणाणं से शास्त्रयोग । इक्को वि नमुक्कारो से सामर्थ्य योग बताया गया हैं । सामर्थ्य योग के बिना संसार से पार नहीं जा सकते ।
शास्त्र आपको मार्ग बतायेगा, परन्तु उसका अमल आपको ही करना पड़ेगा । यह पुरुषार्थ प्रबल होने पर क्षपक श्रेणी हो, सामर्थ्य योग प्रकट हो और संसार से पार उतर सकें ।
सामर्थ्य योग हमें अनुभव-दशा में लीन होने का कहता है । ___ 'शब्द अध्यात्म अर्थ सुणीने, निर्विकल्प आदरजो रे । शब्द अध्यात्म भजना जाणी, हाण ग्रहण मती धरजो रे ॥'
- पूज्य आनन्दघनजी शब्द अध्यात्म अर्थात् अध्यात्म शास्त्र । अजैन इसे शब्द ब्रह्म कहते हैं । शब्द ब्रह्म से पर-ब्रह्म प्राप्त किया जा सकता है । शास्त्र दृष्टि से शब्द-ब्रह्म को जान सकते हैं और अनुभव दृष्टि से पर-ब्रह्म का आनन्द प्राप्त कर सकते हैं ।
पू. हेमचन्द्रसागरसूरिजी : शब्द ब्रह्म अर्थात् शास्त्रयोग, परब्रह्म अर्थात् सामर्थ्य योग । ठीक है न ?
पूज्यश्री : हां, ऐसे ही ।
साधक बनना हो तो सीधा अनुभव में (असंग में) नहीं जाया जा सकता । प्रारम्भ तो प्रीतियोग से ही करना पड़ेगा ।
वाह ! वाह ! ऐसे भगवान ? ऐसे आचार्य ? यदि ऐसे शब्द निकलें तो समझें कि प्रीतियोग में आपका प्रवेश हो गया ।
पू. यशोविजयजी की चौबीसी देख लें। आप को प्रेम-लक्षणा भक्ति प्रतीत होगी । यही प्रीतियोग है । प्रीति भक्ति को उत्पन्न करेगी । प्रीति-भक्ति जागृत होने पर 'वचन योग' आयेगा ही, शास्त्र के प्रति प्रेम उत्पन्न होगा ही। .
शास्त्रों के प्रति हमें प्रेम नहीं है। इसका अर्थ यह हुआ कि हमें भगवान के प्रति प्रेम नहीं है। भगवान पर प्रेम हो और उनके वचनों (शास्त्रों) पर प्रेम न हो, यह असम्भव है ।
* वचन और असंग अनुष्ठान जुड़े हुए हैं । वचन योग आने पर असंग योग आने लगता है ।
. असंग योग ही अनुभव दशा है । (कहे कलापूर्णसूरि -
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