SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 234
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * गुरु के कतिपय पर्यायवाची शब्द : गुरु : 'गु' अर्थात् अज्ञान, 'रु' अर्थात् उलीचने वाला, अज्ञान को उलीचता है वह गुरु है । भिक्खु : जो कर्म को भेदता है वह । यति : यतना के द्वारा जो तिर जाये वह । संयत : जो सम्यक् प्रकार से यम-नियमों आदि की धारणा करके तत्त्व प्रकाशित करता है वह । अणगार : जिसको घर. नहीं है वह । घर अर्थात् छ: काय का कूटा । संसार का मूल आरम्भ है । आरम्भ का अन्त करने वाले का नाम अणगार है । मुनि : मौन रहे वह मुनि । अथवा जगत् - तत्त्वों का मनन करता है वह मुनि है । प्रत्येक शब्द में कैसे अर्थ हैं ? तत्त्वत्रयी में गुरु मध्य में है। - पूज्य कलापूर्णसूरिजी मध्य में हैं, महत्त्वपूर्ण मध्य में बैठते तीन लोकों में महत्त्वपूर्ण मृत्युलोक मध्य में है। मन-वचन-काया में महत्त्वपूर्ण वचन मध्य में है, जिससे परोपकार हो सकता है । गुरु नहीं हो तो शासन नहीं चलेगा । एक लाख पूर्व के दीक्षा पर्याय में एक हजार एवं ८९ पक्ष न्यून शासन आदिनाथ भगवान ने चलाया, परन्तु शेष आधे चौथे आरे तक शासन किसके कारण चला ? नवे एवं दसवे तीर्थंकरो के मध्य गुरु नहीं थे, अतः शासन विच्छिन्न हुआ । * इलाची-पुत्र नटनी के पीछे दीवाना था, परन्तु गुरु के दर्शन करने से केवल ज्ञान पा गया । गुरु के दर्शन में कितनी शक्ति है ? सुना है कि वर्तमान काल में पूज्य भुवनभानुसूरिजी के आचार्यश्री जगच्चन्द्रसूरिजी के संसारी ज्येष्ठ भ्राता पूर्व जन्म में मुर्गे थे । उसे कसाई काट रहा था । कोई बचाने वाला नहीं था । (२०२ 00000000000000000 कहे कलापूर्णसूरि - ३)
SR No.032619
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 03 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy