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________________ उतार लें । समय अत्यन्त तीव्रता से जा रहा है। भगवान महावीर गौतम स्वामी को कहते हैं कि दर्भ की नोक पर रहे बिन्दु को गिरने में क्या देरी ? यह जीवन जाने में क्या देरी ? अतः प्रमाद न करें । परन्तु भगवानं की वाणी भी लोगों ने स्वीकार नहीं की तो मेरी बात तो कहां से स्वीकार करेंगे ? आप यहां नित्य श्रवण · करने के लिए आते हैं यह भी बड़ा उपकार है । * सामर्थ्य योग के दो प्रकार है : (१) धर्म संन्यास । (२) योग संन्यास । संन्यास अर्थात् विरति । संन्यास अर्थात् रुकना । दूसरे अपूर्वकरण में (आठवे गुणस्थानक में) यह सामर्थ्य योग सच्चे अर्थ में आता है। उससे पूर्व अतात्त्विक सामर्थ्य योग दीक्षा ग्रहण करने के समय हो सकता है । * उच्च भूमिका में जाने के पश्चात् नीची भूमिका के गुण लुप्त नहीं हो जाते, वे ही गुण पुष्ट होते रहते हैं । मार्गानुसारी, श्रावकों आदि के गुण अधिकाधिक पुष्ट होते रहते हैं । लाख रुपये हो गये अतः पहले के दस हजार रुपये गये नहीं हैं, परन्तु वे दस गुने हुए हैं । आठवे गुणस्थानक के अतिरिक्त श्रेणी बनती नहीं है। श्रेणी के बिना केवल ज्ञान नहीं । केवल ज्ञान के बिना मोक्ष नहीं । इस समय यह सब नहीं मिलेगा अतः हम उदासीन बने बैठे हैं । यही अपनी भूल है । इस समय प्राप्त सामग्री पर्याप्त नहीं है । सामग्री पर्याप्त मिलेगी तब भारी साधना करेंगे । महाविदेह मे जाकर सीमंधर स्वामी के पास घोर साधना करेंगे, यह सोचने वाले यह नहीं देखते कि इस समय प्राप्त सामग्री का पर्याप्त उपयोग नहीं किया तो किस आधार पर अगली उत्तम सामग्री मिलेगी ? कदाचित् महाविदेह मिल जायेगा, परन्तु वहां से मोक्ष मिलेगा ही, क्या यह निश्चित है ? वहां से मोक्ष जानेवाले हैं और सातवी नरक में जाने वाले भी हैं, यह न भूलें । * मन ज्यों घूमता हैं उस प्रकार घूमने देते हैं, मन चंचल (१८८mmmmmmmmmmmmmmmmss कहे कलापूर्णसूरि - ३)
SR No.032619
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 03 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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