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भुज, वि.सं. २०४३
८-८-२०००, मंगलवार
सावन शुक्ला -९
* शास्त्र, अध्यात्म, कर्म आदि के रहस्यों को ग्रहण करके हम जैसों पर उपकार हो, अतः पूर्वाचार्यों ने ऐसे शास्त्रों की रचना की है, जो हमारी आत्मा के लिए हितकर सिद्ध हो । 'ललित विस्तरा' ग्रन्थ उनमें से एक है ।
* 'नमोऽस्तु' में रहा हुआ 'अस्तु' शब्द यह बताता है कि अभी तक मुझे उत्कृष्ट भाव-नमस्कार मिला नहीं है । मैं उक्त भाव-नमस्कार की इच्छा अवश्य रखता हूं । इच्छायोग आदि के ऐसे रहस्य श्री हरिभद्रसूरिजीने यहां खोले हैं । गणधर भी जब ऐसी नम्रता प्रकट करते हो, तब उत्कृष्टता का दावा करने वाले हम कौन हैं ?
* प्राचीन समय में योगोद्वहन निरन्तर चलते ही रहते थे । आज तो योगोद्वहन सम्पूर्ण हो जायें फिर सब ताक पर रख देते हैं । मूल उद्देश्य कहीं दूर रह गया है । उद्देश्य, समुद्देश्य, अनुज्ञा आदि शब्दों के अर्थ समझे तो पता लगे कि हम कितने दूर हैं ?
उद्देश्य = सूत्र पक्के करना, सूत्रों का आत्मा के साथ योग करना ।
कहे
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