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________________ (२) वाचिक : शुद्ध पाठ के उच्चारपूर्वक । (३) मानसिक : मन की स्थिरतापूर्वक । इस नमस्कार को हम ऐसा क्यों न बना लें, जो हमें संसार से पार लगा दे । * तीन योग हैं : इच्छायोग, शास्त्रयोग और सामर्थ्ययोग । योग-ग्रन्थों में ये तीनों योग प्रसिद्ध हैं । __ योगाचार्यों का कथन है कि इच्छायोग के बल से ही अगले दो योग मिल सकते हैं और वे आपको केवलज्ञान तक ले जाते इसका अर्थ यह हुआ कि हरिभद्रसूरि के युग में इन तीन योगों आदि को बताने वाले अन्य ग्रन्थ, अन्य आचार्य होंगे । उनके आधार पर ही हरिभद्रसूरिजी ने ये तीन योग बताये हैं, अपनी ओर से नहीं । (१) इच्छायोग : विकल धर्म-प्रवृत्ति (विकल अर्थात् अपूर्ण) (२) शास्त्रयोग : अविकल धर्म-प्रवृत्ति (अविकल अर्थात् सम्पूर्ण) (३) सामर्थ्ययोग : अधिक धर्म-प्रवृत्ति । यहां अत्यन्त ही संक्षेप में यह व्याख्या बताई है । संक्षेप में बतायें तो पढ़नेवाला उल्लासपूर्वक पढ़ लेता है । बड़ा ग्रन्थ हो तो उसकी विशालता देखकर ही पाठक रख देंगे । तत्त्वार्थसूत्र संक्षेप का उत्कृष्ट नमूना है । 'उपोमास्वातिं संग्रहीतारः ।' ऐसा हेमचन्द्रसूरिजी ने व्याकरण में उल्लेख किया है । उमास्वाति के संग्रह की समानता अन्य कोई नहीं कर सकता । * भद्रबाहुस्वामी जैसे कहते हैं कि मैं मध्यम वाचना से सूत्रों के अर्थ कहूंगा । विस्तारपूर्वक कहने की मुझ में क्या शक्ति चौदह पूर्वधर भी यदि ऐसी नम्रता प्रकट करते हों तो हमारी क्या विसात ? हम तो ऐसे लाट साहब (फूलणजी) हैं कि एकाध सुन्दर स्तुति अथवा सज्झाय बोलें और कोई प्रशंसा करे तो फूलकर कुप्पा हो जायेंगे । यही ज्ञान का अजीर्ण है। (१५८ esewas some B assam कहे कलापूर्णसूरि - ३)
SR No.032619
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 03 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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