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की विनती की थी । इन्द्र जानते थे कि भगवान की मात्र दृष्टि पड़ जायेगी तो भी यह क्रूर ग्रह कुछ भी नहीं कर सकेंगे । क्षणभर की दृष्टि में भी इतनी शक्ति हो तो तीर्थंकर की समग्र क्षणों की शक्ति कितनी होगी ? उसका अनुमान हम लगा सकते हैं । उक्त शक्ति के प्रभाव से ही इतने तूफानों के मध्य जैन शासन का जय जय कार हो रहा है । मुसलमानों के आक्रमण हुए, मन्दिर - मूर्त्ति टूटी, पुस्तक जल गई आदि बहुत हुआ, फिर भी शासन अभी तक चलता है और चलता ही रहेगा ।
भगवान की इस शक्ति की गुरु के माध्यम से हम अनुभूति कर सकते हैं । इसीलिए कहता हूं कि गुरु को कदापि छोड़े नहीं । गुरु को छोड़ा तो भगवान छूट जायेंगे । यदि भगवान छूट गये तो सब छूट जायेगा ।
* क्या भगवान की स्तुति मात्र करने से कोई मनुष्य भगवान जैसा बन जायेगा ? वह कैसे बनेगा ?
कवि अपने ही प्रश्न का उत्तर देते हुए कहता है कि इसमें क्या आश्चर्य है ? एक सेठ भी अपने आश्रित को अपने समान सेठ बना देता हो, तो भगवान क्यों नहीं बना सकें ?
शक्कर भी अपने सम्पर्क में आने वाले प्रत्येक को मधुर बना देती है । जल में शक्कर डालो तो जल मधुर हो जाता है, घी युक्त आटे में यदि शक्कर मिल जाये तो 'सीरा' बन जाये, मावे में शक्कर मिले तो उसके पेड़ें बन जाते है, बरफी बन जाती है । एक शक्कर कितने पदार्थों को मधुर बना देती है ? शक्कर में भी इतनी शक्ति हो तो क्या भगवान में नहीं होगी ?
* 'योगसार' के प्रथम प्रस्ताव में अन्त में प्रभु को दो विशेषण प्रयुक्त हुए हैं ।
भविनां भवदम्भोलिः 'स्बतुल्य पदवी प्रदः ।' संसार को तोड़ने में वज्र तुल्य । निग्रह गुण । अपने समान पदवी देने वाले । अनुग्रह गुण । निग्रह गुण से भगवान आपको शून्य बना देते हैं । अनुग्रह गुण से भगवान आपको पूर्ण बना देते हैं ।
* कौन सी पीड़ा अधिक खतरनाक होती है ? कांटे, ( कहे कलापूर्णसूरि ३
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