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कल्याण हुए बिना रहेगा ही नहीं, शास्त्रकार ऐसी 'गारंटी' देते हैं ।
उपाय उपेय को देकर ही शान्त रहता है । यह नियम है। दीपक जलाओगे तो प्रकाश होगा ही । पानी पियोगे तो प्यास बुझेगी ही । विधि पूर्वक करो तो कल्याण होगा ही ।।
भगवान की भक्ति करो तो मंगल होता ही है, दुर्गति का भय नष्ट होता ही है। भगवान के भक्त को दुर्गति का भय कैसा ? भक्त निश्चिन्त होता है । क्या हम इतने (ऐसे) निश्चिन्त हैं ?
जब तत्त्व की बात समझ में आती है
अहमदाबाद में तत्त्वज्ञान के वर्ग चलते हैं । एक बहन मंडल की सदस्या होने से वर्ग में आतीं । दो माह के पश्चात् एक बार मिलने आई । अत्यन्त रोई । कारण पूछने पर बताया कि, 'मैं अधोगति में जाऊंगी, अतः रोती हूं ।'
'तुझे ऐसा किसने कहा ?' 'आपने ।'
'अरे ! मेरे पास ऐसा ज्ञान कहां है कि तुझे बता सकूँ कि तेरी गति क्या होगी ?'
'आपने तत्त्व के वर्ग में कहा था कि अति क्रोध, असत्य आदि के परिणाम से जीव अधोगति में जाता है ।' _ 'तू एक काम कर, अभी तक आयुष्य का बंध हुआ है या नहीं, उसका पता नहीं है, परन्तु तू प्रभु-भक्ति में लग जा । दर्शन-पूजन ही तेरा उद्धार कर लेंगे ।'
__ और असत्य नहीं बोलने आदि के नियम ग्रहण कराये ।
एक वर्ष के पश्चात् उसके पति मिलने के लिए आये और कहने लगे कि बहन ! जीवन में घर में शान्ति-शान्ति हो गई है जिसके लिए आपका आभार ।
- सुनन्दाबेन वोरा dol
(कहे कलापूर्णसूरि - ३00aaaaoooooooooooooo ११५)