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आजके शुभ दिन हम संकल्प करें कि ४५ आगमों का एक बार तो अवश्य वाचन करेंगे । श्रावक गण संकल्प करें कि हम आगमों का श्रवण करेंगे और बालकों को धार्मिक विद्यापीठों में अध्ययन करायेंगे।
आज दिगम्बर समाज में विद्वान श्रावक देखने को मिलते है, परन्तु श्वेताम्बरों में विद्वान श्रावक देखने को नहीं मिलते । आगमों में विद्वान् श्रावकों के लिए विशेषण आते हैं - 'लद्धट्टा' आदि ।
गुरुकुल, श्राविकाश्रम, मेहसाना संस्था आदि अनेक विद्याधाम हैं । यदि हम उन्हें प्रोत्साहन देंगे तो ही पूज्य सागरजी महाराज को सच्ची श्रद्धांजलि दी गिनी जायेगी ।
अन्तिम पन्द्रह-पन्द्रह दिनों तक ध्यान-दशा में रहना कितना दुष्कर कहा जाये ? 'झाणज्झयणसंगया'
__ - पंचसूत्र काल के प्रभाव से ध्यान-साधना लुप्त प्रायः हो गई है। प्रत्येक क्रिया ध्यानमय होने पर भी उसे उस प्रकार कर नहीं सकते । अतः अन्य शिविरों में जाकर जैन-शासन से विमुख होने वाले जैन देखने को मिलते हैं ।
यहां ध्यान-मार्गी पूज्य कलापूर्णसूरिजी, पूज्य यशोविजयसूरिजी जैसे यदि दस-पन्द्रह दिन तक चले वैसी ध्यान-पद्धति चलायेंगे तो अत्यन्त आनन्द होगा ।
पूज्यश्री हेमचन्द्रसागरसूरिजी : _ 'गुर्वाधीन्यं सुसत्त्वं च, संयमे सुप्रतिष्ठितम् ।
महतां लक्षणं तुर्य, विपुलो ज्ञानवैभवः ॥' प्रश्न है : महान कौन ? महापुरुष बनने के अरमान तो सबके होते हैं परन्तु कौन महापुरुष बन सकता है ?
इस श्लोक में चार बाते हैं : (१) गुरु - अधीनता । (२) सत्त्वशीलता । (३) संयम में चुस्तता ।
(४) विपुल ज्ञान - वैभव । (१०८ 00000mmmmmmoooooooo कहे कलापूर्णसूरि - ३)