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________________ आज भक्ति पर प्रवचन है । मैत्री-भाव सरल नहीं है, बीच में मोह पड़ा है, जिसे भक्ति के बिना दूर नहीं किया जा सकता । मोह जीव के साथ मैत्री एवं जड़ के प्रति अनासक्ति पनपने नहीं देता । मैत्री भाव को सिद्ध करने के लिए भक्ति अनिवार्य गिनी गई है। प्रभु-प्रेमी पू. आचार्यश्री कलापूर्णसूरिजी ने २७ मिनट तक भक्ति पर प्रवचन दिया, परन्तु सबने नहीं सुना होगा । उन्हों ने सुन्दर मुद्दों पर कहा, कैसे रहस्य खोले, उन्हें स्पष्ट करने के लिए मैं श्री धुरन्धरविजयजी को विनती करुंगा । - दूसरे गच्छाधिपती पू. सूर्योदयसागरसूरिजी अस्वस्थ होते हुए भी उपस्थित हुए हैं, यह हमारा पुण्योदय है । कैसा उत्तम योग बना है। ऊपर बिराजमान दोनों गच्छाधिपति एवं धुरन्धरविजयजी भी परिवार से साथ दीक्षित हुए हैं । दोनों गच्छाधिपतियों की आयु ७७ वर्ष है । नहीं सुनाई दे तो भी शान्ति से बैठें । __ पू. मुनिश्री धुरन्धरविजयजी म. : (पूज्य मुनिश्री धुरन्धरविजयजी ने पूज्य कलापूर्णसूरिजी की बात बुलन्द आवाज में कही ताकि सबको सुनाई दे ।) प्रभु के परम भक्त पू. आचार्य कलापूर्णसूरिजी को जिन्हों ने नहीं सुना, उन्हें भी झरने की तरह उनके शब्दों के स्पन्दनों का स्पर्श तो हुआ ही है । इस मंच पर पूज्यश्री ने भक्ति विषय पर चर्चा की ।। गत रविवार को चर्चित मैत्री यहां स्पष्ट दिखाई देती है । मैत्री भक्ति से ही सिद्ध होती है। छोटी-छोटी बातों में वाडे बांधने वाले हम मैत्री को कैसे समझ सकेंगे ? यह आदत भक्ति से ही मिट सकती है । पूज्यश्री ने कहा : गौतम स्वामी ने केवलज्ञान का लोभ भी छोड़ दिया । अइमुत्ता की बात आप सभी सुन चुके हैं ।। क्या प्रभु के प्रथम गणधर गोचरी लेने जाते हैं ? कितनी नम्रता ? ९४mnangaponomoganana कहे SHIKITS कहे कलापूर्णसूरि-३
SR No.032619
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 03 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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