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4 चीख-पुकार मचाने का भी अवसर नहीं मिला । वे तो भारी छतों,
पत्थरों आदि के नीचे दबकर तत्क्षण मौत के करालगाल में समा गये ।
८.१ रिक्टर स्केल के ऐसे भयंकर भूकम्प से अखिल विश्व हचमचा उठा (भारतीय भूस्तरशास्त्रियों के अनुसार यह भूकम्प ६.९ रिक्टर स्केल का था, जबकि अमेरिकन भूस्तरशास्त्री उसे ७.९ अथवा ८.१ का कहते थे । भारतीय भूस्तरशास्त्रियों ने उसका केन्द्र बिन्दु कच्छ-भुज के उत्तर में लोडाई-धंग के पास बताया है, जबकि अमेरिकन भूस्तरशास्त्रियों ने खोज करके कच्छ के भचाऊ तालुका में बंधडी-चोबारी के निकट कहीं केन्द्र बिन्दु होने का कहा है। नुकसान यदि देखा जाये तो अमेरिकन भूस्तरशास्त्री सही प्रतीत होते हैं ।)
भूकम्प का केन्द्र-बिन्दु हमारे गांव 'मनफरा' के निकट ही होने से अनेक गांवों के साथ हमारा गांव भी पूर्णतः ध्वस्त हो गया ।
भचाऊ, अंजार, रापर और भुज - इन चार नगरों के साथ चारों तालुकों में अपार हानि हुई । हजारों मनुष्य जीवित गड़ गये। किसी कवि ने कहा हैं कि 'जीवन का मार्ग मात्र घर से कब्र तक का है ।' परन्तु यहां तो घर ही कब्र बन गये थे । जो छत एवं छपरे आज तक रक्षक बने रहे, वे ही आज भक्षक बन गये थे । 'जे पोषतुं ते मारतुं, एवो दीसे क्रम कुदरती' कलापी की यह पंक्ति कितनी यथार्थ है ?
अनेक गांवों के साथ हमारा 'मनफरा' गांव भी धराशायी हो चुका था । जिनालय, उपाश्रय आदि धर्म-स्थानों सहित लगभग समस्त मकान धराशायी हो गये । हमारा गांव विक्रम की सत्रहवी (वि.सं. १६०७) शताब्दी के प्रारम्भ में ही बसा हुआ है । उस समय की खड़ी गांव के मध्य की जागीर भी पूर्णतः ध्वस्त हो गई जिसके सम्बन्ध में किसी विशेषज्ञ इन्जीनियरने कहा था कि अभी भी कम से कम दो सौ वर्षों तक इस जागीर का कुछ नहीं बिगड़ेगा।
गांव की शोभा के रूप में निर्मित देवविमान तुल्य सुन्दर